Tuesday, December 22, 2020

दुर्गो की प्रकार



1. पारिख दुर्ग:-  वह दुर्ग जिसके चारों और गहरी खाई हो पारिख दुर्ग की श्रेणी में आता है

 उदाहरण:-  भरतपुर का किला, डीग, लोहागढ़ व बीकानेर का जूनागढ़ का दुर्ग है 

जल(उदक) दुर्ग:- वह दुर्ग अथवा किला जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ हो जल दुर्ग कहलाता है

 उदाहरण:- गागरोण ,मनोहरथाना (झालावाड़), व भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़), शेरगढ़

 गिरीदुर्ग:- वह दुर्ग एवं किला जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हो , जल दुर्ग कहलाता है |
 राजस्थान में सर्वाधिक दुर्ग इस श्रेणी में आते हैं 

धान्वन/भूमि दुर्ग:-  वह दुर्गा अथवा किला जिसके चारों ओर मरुस्थलों | 

 उदाहरण:- जैसलमेर का दुर्ग , भटनेर का किला (यह किला जलदुर्ग भी है), अकबर का किला, नागौर का किला, बीकानेर का किला, चोमू का किला (चौमुहांगढ़) आदि

वन दुर्ग:- वह दुर्ग विचारों और सेवाओं से अथवा कांटेदार वृक्ष से ढका हुआ हो |

उदाहरण :- जालोर का दुर्ग , शेरगढ़ (जलदुर्ग भी है )

सहाय दुर्ग:- सहाय दुर्ग में शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते थे | चित्तौड़ , जालौर तथा सिवाना दुर्ग सहाय दूर की श्रेणी में आते हैं

सैन्य दुर्ग:- जिसकी व्यूह  रचना में चतुर वीरों के होने से अभेध हो यह दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है 

एरण दुर्ग :-  जिस दुर्ग का मार्ग कांटों और पत्थरों से परिपूर्ण हो 

उदाहरण:- रणथंभोर दुर्ग

 पारिध दुर्ग:- वह दुर्ग जिसके चारों ओर ईट, पत्थर और मिट्टी के बने बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो

उदाहरण:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग, कुंभलगढ़ दुर्ग 

काग मुखी:-  दुर्ग जो आगे की ओर गढ़ में प्रवेश मार्ग बिल्कुल साकड़ा और पीछे की ओर फैला हुआ है

 उदाहरण:- जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग 

पाशीब :- किले की प्राचीर से हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊंचा चबूतरा 

थड़ा :- मृत पुरुष के दाह - स्थान पर बनाया हुआ स्मृति भवन जोधपुर में महाराणा जसवंत सिंह की यादगार में दुर्ग के पास एक संगमरमर का स्मृति भवन बनाया हुआ है जिसे जसवंत थड़ा कहा जाता है 
इसे राजस्थान का ताजमहल का आ जाता है 

हनुमानगढ़ का भटनेर दुर्ग भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने हुए हैं 

जीव रखा :- मुख्य मार्ग से होने वाले आक्रमण को विफल  करने वाली रक्षा भित्ति थी | जीव रखा किले के ढलान वाले  मार्ग पर सैनिक रखने का स्थान था यह छोटा गढ़ वह किला की आत्मा  था 
किले के ऊपर 4 -5 घोड़ों के एक साथ चलने योग्य चौड़ी प्राचीर पर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर घुमटिया बनाई जाती थी इसमें  सैनिक नियुक्त रहते थे, जो कवसीस कहलती

Saturday, December 19, 2020

16 अगस्त 1946 : कोलकाता डाईरेक्ट एक्शन

 16 अगस्त 1946 सीधी कार्यावाही का दिन





मुस्लिम लीग नें मुस्लमानों के लिये पृथक राष्ट्र की मांग के लिये मुस्लमानों से सीधी कार्यवाही का आह्वान किया। लीग के नेताओं नें अपने बयानों से एक बहुत बङे कत्ले आम की नींव तैयार कर दी थी लेकिन मोहनदास गांधी की जिद और ब्रिटिश सरकार की तट्स्थता नें लाखों हिंदुओं की बलि ले ली,लाखों हिंदुओं को जबरदस्ती मुस्लमान बना दिया गया लाखों हिंदु नारियों की अस्मत लूट ली गई, लाखों हिंदुओं की जमीन जायदाद हङप ली गई और उन्हें पलायन करने को मजबूर किया गया।
लीग के नेताओं के बयानों की एक बानगी :-
1. मोहम्मद अली जिन्ना :- डाईरेक्ट एक्शन – हिंदुओं पर 100 गुणा अधिक तीव्र हो।
2. सरदार अब्दुर रब निश्तार :- पाकिस्तान केवल खुद का खुन बहा कर हासील किया जा सकता है, और अगर जरुरत हुई और हालात बने तो दुसरों का खुन बहाने से भी परहेज नहीं करेंगे।
3. नवाब जादा लियाकत अली खान :-सीधी कार्यवाही का मतलब असंवैधानिक सहारे जैसे भी हालात इजाजत दें।
4. गुलाम मुस्तफा शाह गिलानी :- पाकिस्तान कि स्थापना को रोकने की कोशिश पर किसी भी रक्त-पात का नेतृत्व करुंगा।
5. सरदार शौकत हयात खान :- पंजाब का मुसलमान अहिंसा में विश्वास नहीं करता,हमें व्यथित मत करो, अगर एक बार यह मुस्लिम शेर भङक गया तो रोक पाना मुश्किल होगा।
6. सर फिरोज खां नून :- हमनें बेहतर तरीके से बता दिया है। हम ब्रिटेन के खिलाफ लङे हैं, अगर हमें किसी केंद्रिय हिंदु राज के अंतर्गत रखा गया तो यह मुसलमानों को लज्जित करनें जैसा होगा, लोग भुले नहीं होंगे, हलाकू और चंगेज खान ने क्या किया था।
7. सर गुलाम हुसैन हिदायतुल्ला जो तात्कालीन सिंध के प्रधानमंत्री थे :- कांग्रेस जब तक हमारी मांग नहीं मान लेती तब तक दोस्ती का कोई मतलब नहीं। इसके अलावा हिंदुस्तान में शांति स्थापित होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
16 अगस्त की सुबह कोलकाता के लिये मुसीबत ले कर आई। 10 बजे लाल बाजार पुलिस मुख्यालय को सुचना मिली शहर में कुछ जगह छुरे-बाजी, पथराव की घटनायें हुई हैं तथा जबरदस्ती दुकानें बंद करवाई गई हैं। ये घटनायें मुख्य रुप से राजा बाजार, केला बागान, काॅलेज स्ट्रीट, हैरिसन रोङ,कोलुटोला और बुर्रा बाजार इलाकों में हो रही थीं, जो शहर के उत्तर-मध्य भागों में केंद्रित थे। यह आर्थिक रुप से सम्पन्न हिंदु बाहुल्य क्षेत्र था।

घटना ने तब विकराल रुप धारण कर लिया जब ठीक 12 बजे मुस्लिम लीग ने आॅक्टरलोनी स्मारक में सभा शुरु की। उस समय यह बंगाल की सबसे बङी मुस्लिम विधान सभा थी। कोलकाता के विभिन्न भागों से दोपहर की नमाज के बाद मुसलमान इकट्ठा होना शुरु हो गये। सभा लगभग 2 बजे शुरु हई। इस भीङ को बङी संख्या में लोहे के सरियों व लाठियों से सुसज्जित किया गया था। उस वक्त के केंद्रिय अधिकारी के मुताबिक भीङ में 30,000 लोग शामिल थे लेकिन कोलकाता स्पेशल ब्रांच के अधिकारी जो कि मुस्लिम था के अनुसार 500,000 लोग थे। बाद के आंकङे ज्यादा प्रतीत होते हैं जो कि असम्भव सा है, स्टार आॅफ इंडिया के रिपोर्टर के अनुसार 100,000 लोग थे। पुलिस दखल ना दे यह सुनिश्चित कर लिया गया था, हलांकि पुलिस को वापिस नियंत्रण का भी कोई विशिष्ट आदेश नहीं था। तात्कालिन प्रधानमंत्री सुहारवर्दी की इस सभा की रेपोर्टींग के लिये कोलकाता पुलिस ने सिर्फ एक आशुलिपिक को भेजा था इस वजह से सुहारवर्दी के भाषण की कोई प्रतिलिपि मौजुद नहीं है। सुहारवर्दी ने सुबह के हमलों को हिंदुओं का मुसलिमों पर हमला बताया और कहा कि मुसलमानों ने सिर्फ अपनी हिफाजत की थी। सुहारवर्दी नें इस विशाल अशिक्षित भीङ को हिंदुओं पर हमला करनें तथा उनकी दुकानें लूटनें के लिये उकसाया। उत्तेजित भीङ शिघ्र ही वहाँ से निकल पङी। कुछ ही देर में सुचना मिली की हथियार बंद मुसलमान ट्रकों में भर कर हैरिसन रोङ पर पहुंच गये हैं। इस भीङ नें हिंदुओं और सिखों पर हमला कर दिया, दुकानें लूट ली गईं, कुछ लोग ईंट, शीशे की टुटी बोतलों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। भयभित हिंदुओं तथा सिखों को पकङ-पकङ कर काटना शुरु कर दिया। हिंदुओं तथा सिखों की लाशें बिछा दी गई। कोलकाता के सहायक प्रोवोस्ट मार्शल मेजर लिटिल बाॅय के नेतृत्व में सैन्य संस्थानों, गार्ड, व इस तरह के हालात से निपटनें में विशेष रुप से सक्षम बलों नें विस्थापित व जरुरतमंद लोगो के लिये बचाव अभियान में महत्वपुर्ण कार्य किया।

17 अगस्त को मेटियाब्रज स्थित केसोराम काॅट्न में नरसन्हार का नंगा खेल खेला गया। सैयद अब्दुल्ला फारुखी (जो कि गार्ड्न रीच टेक्स्टाइल युनियन का अध्यक्ष था ) नें इलियान मिस्त्री नामक मुसलमान गुंडे के साथ एक मुस्लिम भीङ का नेतृत्व करते हुये मील परिसर में बनें कर्मचारी आवास में रह रहे मजदुरों पर धावा बोल दिया। इस भीङ नें फारुखी की शह पर
थोक में कत्ले आम मचा दिया। इस नरसन्हार 1100 हिंदुओं को काट डाला गया जिसमें 300 उङिया मजदुर भी थे।
इस नरसन्हार में 4 जिवित बच गये लोगोंं नें 25 अगस्त को फारुखी के खिलाफ मेटियाब्रज पुलिस थानें शिकायत दर्ज करवाई। उङिसा सरकार के मंत्री बिश्वनाथ दास नें केसोराम काॅट्न मील में उङिया मजदुरों की हत्या की जांच के लिये दौरा किया। कुछ सुत्र मृतकों की संख्या 7,000 से 10,000 तक बताते हैं। सभी मृतक हिंदु थे।
साम्प्रदायिक दंगे एक सप्ताह तक चलते रहे। 21 अगस्त को बंगाल को वायसराय के अधीन कर दिया गया। 5 ब्रिटिश सैनिक बटालियन तैनात की गईं जिनकी सहायता के लिये 4 हिंदु,गोरखा बटालियन भी लगाई गईं। लार्ड वावेल नें और ब्रिटिश सैनिक बुलाने चाहे मगर ज्यादा ब्रिटिश सैनिक उपलब्ध नहीं थे। 22 अगस्त को दंगों का असर कम कर दिया गया।
नोआखली में जो दंगें हुये उन्हें नोआखली नरसन्हार के रुप में जाना जाता है। यह नरसन्हार, बलात्कार, अपहरण,लूट व जबरन धर्म परिवर्तन की एक श्रंखला थी। अंग्रेजों से आजादी के साल भर पहले अक्टुबर-नवम्बर 1946 में मुसलमानों द्वारा किया गया यह नरसन्हार 2,000 वर्ग मील के विस्तृत क्षेत्र में फैल गया था। नोखावली जिले के रामगंज, बेगमगंज, रायपुर, लक्ष्मीपुर,चोगलनैया व सेंड्विप पुलिस थानों के अंतरगत तथा टिपेराह जिले के हाजीगंज, फरीद्गंज, चांदपुर,लक्सम तथा चौद्दाग्राम के थानों के क्षेत्र प्रभावित हुये थे।
10 अक्टुबर 1946 को कोजागरी लक्ष्मी पुजा के दिन शुरु हुआ हिंदुओं का नरसन्हार एक सप्ताह तक बेरोकटोक चलता रहा। इसमें 5,000 (सुत्रों के अनुसार 10,000) हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। दंगों में बचे50,000-75,000 नें कोमिला, चांदपुर, अगरतला के अस्थाई शिविरों में शरण ली। जिन्हें जबरन मुसलमान बना दिया गया था वो लोग मुस्लिम नेताओं की कङी निगरानी में जी रहे थे। उन्हें गाँवों से बाहर जानें के लिये मुस्लिम नेताओं से अनुमति लेनी पङती थी। जबरन मुसलमान बनाये लोगों को मजबुर किया गया कि वो लिख कर दें कि हमनें अपनी मर्जी से मुसलमान होना स्वीकार किया है। उन्हें मुस्लिम लीग की सदस्यता के लिये भुगतान करने को मजबुर किया गया। उन पर जिजिया लगाया गया तथा जिम्मी (एक इस्लामिक राज्य) के रुप में उन्हें संरक्षण कर देना पङा। नोआखली जिले से बंगाल विधान सभा में प्रतिनिधि हारान चौधरी घोष नें कहा था ये साधारण दंगे नही थे ये मुसलमानों द्वारा प्रायोजित हिंदुओं का नरसंहार था। डाॅ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी नें कहा के यह बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा अल्पसंख्यक हिंदुओं का योजनाबद्द नरसंहार था।
मोहनदास गांधी ने नोआखली में शांति व साम्प्रदायिक सदभाव करनें के लिये 4 महिनें तक शिविर लगाया मगर यह मिशन बचे खुचे हिंदुओं में स्थाई रुप से अपनें गाँवों में पुनर्वास का विश्वास जगानें में नाकाम रहा। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व नें विभाजन को स्वीकार कर लिया और शांति मिशन तथा राहत शिविरों को बीच में ही छोङ दिया गया। बचे हुये हिंदु आसाम,त्रिपुरा तथा बंगाल में पलायन कर गये जहाँ वो बहुसंख्यक बन सकें।

ref: https://enacademic.com/dic.nsf/enwiki/1148458

Saturday, December 12, 2020

रिश्तो_में_दरार

अनोखी कहानी👇👇

#रिश्तो_में_दरार:- दाम्पत्य रिश्ते को किसी सूरत में स्वयं ही बचाइए...….✍️ 

राधिका और नवीन को आज तलाक के कागज मिल गए थे। दोनो साथ ही कोर्ट से बाहर निकले। दोनो के परिजन साथ थे और उनके चेहरे पर विजय और सुकून के निशान साफ झलक रहे थे। चार साल की लंबी लड़ाई के बाद आज फैसला हो गया था।
दस साल हो गए थे शादी को मग़र साथ मे छः साल ही रह पाए थे। 
चार साल तो तलाक की कार्यवाही में लग गए।
राधिका के हाथ मे दहेज के समान की लिस्ट थी जो अभी नवीन के घर से लेना था और नवीन के हाथ मे गहनों की लिस्ट थी जो राधिका के घर से लेने थे।

साथ मे कोर्ट का यह आदेश भी था कि नवीन  दस लाख रुपये की राशि एकमुश्त राधिका को चुकाएगा।

राधिका और नवीन दोनो एक ही टेम्पो में बैठकर नवीन के घर पहुंचे।  दहेज में दिए समान की निशानदेही राधिका को करनी थी।
इसलिए चार वर्ष बाद ससुराल जा रही थी। आखरी बार बस उसके बाद कभी नही आना था उधर।

सभी परिजन अपने अपने घर जा चुके थे। बस तीन प्राणी बचे थे।नवीन, राधिका और राधिका की माता जी।

नवीन घर मे अकेला ही रहता था।  मां-बाप और भाई आज भी गांव में ही रहते हैं। 

राधिका और नवीन का इकलौता बेटा जो अभी सात वर्ष का है कोर्ट के फैसले के अनुसार बालिग होने तक वह राधिका के पास ही रहेगा। नवीन महीने में एक बार उससे मिल सकता है।
घर मे प्रवेश करते ही पुरानी यादें ताज़ी हो गई। कितनी मेहनत से सजाया था इसको राधिका ने। एक एक चीज में उसकी जान बसी थी। सब कुछ उसकी आँखों के सामने बना था।एक एक ईंट से  धीरे धीरे बनते घरोंदे को पूरा होते देखा था उसने।
सपनो का घर था उसका। कितनी शिद्दत से नवीन ने उसके सपने को पूरा किया था।
नवीन थकाहारा सा सोफे पर पसर गया। बोला "ले लो जो कुछ भी चाहिए मैं तुझे नही रोकूंगा"
राधिका ने अब गौर से नवीन को देखा। चार साल में कितना बदल गया है। बालों में सफेदी झांकने लगी है। शरीर पहले से आधा रह गया है। चार साल में चेहरे की रौनक गायब हो गई।

वह स्टोर रूम की तरफ बढ़ी जहाँ उसके दहेज का अधिकतर  समान पड़ा था। सामान ओल्ड फैशन का था इसलिए कबाड़ की तरह स्टोर रूम में डाल दिया था। मिला भी कितना था उसको दहेज। प्रेम विवाह था दोनो का। घर वाले तो मजबूरी में साथ हुए थे। 
प्रेम विवाह था तभी तो नजर लग गई किसी की।  

#क्योंकि_प्रेमी_जोड़ी_को_हर_कोई_टूटता_हुआ_देखना_चाहता_है। 
#बस_एक_बार_पीकर_बहक_गया_था_नवीन। 
#हाथ_उठा_बैठा_था_उसपर। #बस_वो_गुस्से_में_मायके_चली_गई_थी। 

फिर चला था लगाने सिखाने का दौर । इधर नवीन के भाई भाभी और उधर राधिका की माँ। नौबत कोर्ट तक जा पहुंची और तलाक हो गया।

न राधिका लौटी और न नवीन लाने गया। 

राधिका की माँ बोली" कहाँ है तेरा सामान? इधर तो नही दिखता। बेच दिया होगा इस शराबी ने ?"

"चुप रहो माँ" 
राधिका को न जाने क्यों नवीन को उसके मुँह पर शराबी कहना अच्छा नही लगा।

फिर स्टोर रूम में पड़े सामान को एक एक कर लिस्ट में मिलाया गया। 
बाकी कमरों से भी लिस्ट का सामान उठा लिया गया।
राधिका ने सिर्फ अपना सामान लिया नवीन के समान को छुवा भी नही।  फिर राधिका ने नवीन को गहनों से भरा बैग पकड़ा दिया। 
नवीन ने बैग वापस राधिका को दे दिया " रखलो, मुझे नही चाहिए काम आएगें तेरे मुसीबत में ।"

गहनों की किम्मत 15 लाख से कम नही थी। 
"क्यूँ, कोर्ट में तो तुम्हरा #वकील कितनी दफा गहने-गहने चिल्ला रहा था" 
"कोर्ट की बात कोर्ट में खत्म हो गई, राधिका। वहाँ तो मुझे भी दुनिया का सबसे बुरा जानवर और शराबी साबित किया गया है।"
सुनकर राधिका की माँ ने नाक भों चढ़ाई।

"नही चाहिए। 
वो दस लाख भी नही चाहिए"

 "क्यूँ?" कहकर नवीन सोफे से खड़ा हो गया।

"बस यूँ ही" राधिका ने मुँह फेर लिया।

"इतनी बड़ी जिंदगी पड़ी है कैसे काटोगी? ले जाओ,,, काम आएगें।"

इतना कह कर नवीन ने भी मुंह फेर लिया और दूसरे कमरे में चला गया। शायद आंखों में कुछ उमड़ा होगा जिसे छुपाना भी जरूरी था।

राधिका की माता जी गाड़ी वाले को फोन करने में व्यस्त थी।

राधिका को मौका मिल गया। वो नवीन के पीछे उस कमरे में चली गई।

वो रो रहा था। अजीब सा मुँह बना कर।  जैसे भीतर के सैलाब को दबाने की जद्दोजहद कर रहा हो। राधिका ने उसे कभी रोते हुए नही देखा था। आज पहली बार देखा न जाने क्यों दिल को कुछ सुकून सा मिला।

मग़र ज्यादा भावुक नही हुई।

सधे अंदाज में बोली "इतनी फिक्र थी तो क्यों दिया तलाक?"

"मैंने नहीं तलाक तुमने दिया" 

"दस्तखत तो तुमने भी किए"

"माफी नही माँग सकते थे?"

"मौका कब दिया तुम्हारे घर वालों ने। जब भी फोन किया काट दिया।"

"घर भी आ सकते थे"?

"हिम्मत नही थी?"

राधिका की माँ आ गई। वो उसका हाथ पकड़ कर बाहर ले गई। "अब क्यों मुँह लग रही है इसके? अब तो रिश्ता भी खत्म हो गया"

मां-बेटी बाहर बरामदे में सोफे पर बैठकर गाड़ी का इंतजार करने लगी। 
राधिका के भीतर भी कुछ टूट रहा था। दिल बैठा जा रहा था। वो सुन्न सी पड़ती जा रही थी। जिस सोफे पर बैठी थी उसे गौर से देखने लगी। कैसे कैसे बचत कर के उसने और नवीन ने वो सोफा खरीदा था। पूरे शहर में घूमी तब यह पसन्द आया था।"
 
फिर उसकी नजर सामने तुलसी के सूखे पौधे पर गई। कितनी शिद्दत से देखभाल किया करती थी। उसके साथ तुलसी भी घर छोड़ गई।

घबराहट और बढ़ी तो वह फिर से उठ कर भीतर चली गई। माँ ने पीछे से पुकारा मग़र उसने अनसुना कर दिया। नवीन बेड पर उल्टे मुंह पड़ा था। एक बार तो उसे दया आई उस पर। मग़र  वह जानती थी कि अब तो सब कुछ खत्म हो चुका है इसलिए उसे भावुक नही होना है। 

उसने सरसरी नजर से कमरे को देखा। अस्त व्यस्त हो गया है पूरा कमरा। कहीं कंही तो मकड़ी के जाले झूल रहे हैं।

कितनी नफरत थी उसे मकड़ी के जालों से?

फिर उसकी नजर चारों और लगी उन फोटो पर गई जिनमे वो नवीन से लिपट कर मुस्करा रही थी।
कितने सुनहरे दिन थे वो।

इतने में माँ फिर आ गई। हाथ पकड़ कर फिर उसे बाहर ले गई।

बाहर गाड़ी आ गई थी। सामान गाड़ी में डाला जा रहा था। राधिका सुन सी बैठी थी। नवीन गाड़ी की आवाज सुनकर बाहर आ गया। 
अचानक नवीन कान पकड़ कर घुटनो के बल बैठ गया।
बोला--" मत जाओ,,, माफ कर दो"
शायद यही वो शब्द थे जिन्हें सुनने के लिए चार साल से तड़प रही थी। सब्र के सारे बांध एक साथ टूट गए। राधिका ने कोर्ट के फैसले का कागज निकाला और फाड़ दिया । 
और मां कुछ कहती उससे पहले ही लिपट गई नवीन से। साथ मे दोनो बुरी तरह रोते जा रहे थे।
दूर खड़ी राधिका की माँ समझ गई कि 
कोर्ट का आदेश दिलों के सामने कागज से ज्यादा कुछ नही।
काश उनको पहले मिलने दिया होता?
♥️♥️♥️

अच्छा लगे तो कमेंट कर के जरूर बताये।
धन्यवाद

Thursday, December 3, 2020

शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी : सच्चाई

 आगरा के ताजमहल को शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी का प्रतीक कहा जाता है.



लेकिन शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी को इतिहासकार शुरू के नकारते आयें हैं. शाहजहाँ और मुमताज की कोई प्रेम कहानी नहीं थी, बल्कि इनके जीवन की सच्चाई प्रेम कहानी से बिलकुल अलग थी.

  • मुमताज का असली नाम अर्जुमंद-बानो-बेगम” था, जो शाहजहाँ की पहली पत्नी नहीं थी.
  • मुमताज के अलावा शाहजहाँ की 6  और पत्नियां भी थी और इसके साथ उसके हरम में 8000 रखैलें भी थी.
  • मुमताज शाहजहाँ की चौथे नम्बर की पत्नी थी. मुमताज से पहले शाहजहाँ 3 शादियाँ कर चुका था. मुमताज से शादी करने के बाद 3 और लड़कियों से विवाह किया था.
  • मुमताज का विवाह शाहजहाँ से होने से पहले मुमताज शाहजहाँ के  सूबेदार शेर अफगान खान की पत्नी थी. शाहजहाँ ने मुमताज का हरम कर विवाह किया.
  • मुमताज से विवाह करने के लिए शाहजहाँ ने मुमताज के पहले पति की हत्या करवा दी थी.
  • शाहजहाँ से विवाह के पहले मुमताज का शेर अफगान खान से एक बेटा भी था.
  • मुमताज शाहजहाँ के बीवियों में सबसे खुबसूरत नहीं थी. बल्कि उसकी पहली पत्नी इशरत बानो सबसे खुबसूरत थी.
  • मुमताज की मौत  उसके 14 वे बच्चे के जन्म के बाद हुई थी.

38-39 बरस की उम्र तक मुमताज तकरीबन हर साल गर्भवती रहीं. शाहजहांनामा में मुमताज के बच्चों का ज़िक्र है. इसके मुताबिक-

1. मार्च 1613: शहजादी हुरल-अ-निसा
2. अप्रैल 1614: शहजादी जहांआरा
3. मार्च 1615: दारा शिकोह
4. जुलाई 1616: शाह शूजा
5. सितंबर 1617: शहजादी रोशनआरा
6. नवंबर 1618: औरंगजेब

7. दिसंबर 1619: बच्चा उम्मैद बख्श
8. जून 1621: सुरैया बानो
9. 1622: शहजादा, जो शायद होते ही मर गया
10. सितंबर 1624: मुराद बख्श
11. नवंबर 1626: लुफ्त्ल्लाह
12. मई 1628: दौलत अफ्जा
13. अप्रैल 1630: हुसैनआरा
14. जून 1631: गौहरआरा

शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने अपने 14वें बच्‍चे गौहर आरा के जन्‍म के दौरान 17 जून 1631 को दम तोड़ दिया था। मुमताज अपनी 19 साल के वैवाहिक जीवन में 10 साल से ज्‍यादा समय तक गर्भवती रहीं। 
 
- 17 मई 1612 को मुमताज महल और शाहजहां की शादी हुई। उन्‍होंने 14 बच्‍चों को जन्‍म दिया। इनमें से आठ लड़के और छह लड़कियां थीं। इनमें सिर्फ सात ही जिंदा बचे।
- शादी के बाद मुमताज महल ने लगातार 10 बच्‍चों को जन्‍म दिया। 

10वें और 11वें बच्‍चे के जन्‍म में पांच साल का अंतर था। 

1627 में वो 12वीं बार गर्भवती हुईं। 

दो साल बाद 1629 में 13वें बच्‍चे को जन्‍म दिया।  

14वें बच्‍चे को 1631 में जन्‍म देने के दौरान 30 घंटे की प्रसव पीड़ा से जूझते हुए मुमताज ने दम तोड़ दिया था। 30 घंटे तक प्रसव पीड़ा में रहीं थीं मुमताज...

  • मुमताज के मौत के तुरंत बाद शाहजहाँ ने मुमताज की बहन फरजाना से विवाह कर लिया था.

ये थी शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी की सच्चाई.....

Monday, November 23, 2020

तेग बहादुर की शहीदी

Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas: 

गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति और निर्भीक स्वभाव के थे.
 सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Teg Bahadur) का आज शहीदी दिवस (Shaheedi Diwas) है. गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. पंजाब के अमृतसर (Amritsar) में जन्में गुरु तेग बहादुर सिंह के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह (Guru Hargovind Singh) था. उनके बचपन का नाम त्यागमल (Tyagmal) था. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति, निर्भीक स्वभाव के थे. वह 24 नवंबर, 1675 को शहीद हुए थे. 

झुके नहीं, बलिदान किया स्‍वीकार 

गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने झुके नहींं. इसका नतीजा यह हुआ क‍ि उनका सिर कलम करवा दिया गया. आतंकवादी औरंगजेब ने उन्‍हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में साफ मना कर दिया. गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें 'हिंद दी चादर' के नाम से भी जाना जाता है. बता दें कि दिल्ली का 'शीशंगज गुरुद्वारा' वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था.

कश्मीरी पंडितों के लिए लिया लोहा
गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई जब वह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने  पर तुला हुआ था. कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की मदद ली. इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी इफाजत का जिम्मा अपने सिर से ले लिया. उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया. वहीं गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े. इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया. जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था. वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले. भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को
भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्‍होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया. बता दें कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था.
 
बता दें कि 18 अप्रैल 1621 में जन्में तेग बहादुर करतारपुर की जंग में मुगल सेना के खिलाफ लोहा लेने के बाद उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा. वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है.' 

24 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फतवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से सी' तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोबिंद सिंह जी ने विचित्र नाटक  में लिखा है-
तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥
धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ 
और आज तक यही चल रहा है, परंतु आज के परिदृश्य में हम देखते है की तेग बहादुर जैसे महान ओर साहसी व्यक्ति मिलना लगभग असम्भव हो गया है ।

शेयर जरुर करे
इमेज संदर्भ : गूगल





Friday, November 13, 2020

अकबर की हकीकत


जोधाबाई और भारत के मुगल शासक अकबर की प्रेमकथा देश की सबसे बड़ी प्रेम कहानियों में गिनी जाती है लेकिन ये दोनों पति-पत्नी तो क्या प्रेमी तक नहीं थी। इतिहासकारों और कुछ गाइड्स की गलतफहमी की वजह से अकबर का नाम उन्हीं की बहु जोधाबाई के साथ जोड़ दिया गया। दरअसल जोधाबाई उनके बेटे सलीम उर्फ जहांगीर की पत्नी थी, लेकिन जोधा अकबर की प्रेम कहानी में कोई सच्चाई नहीं है।

जोधा अकबर की प्रेम कहानी अकबर को अच्छा दिखाने के लिए बनाई गई काल्पनिक कहानी ही है। अकबर पूरी दुनिया को अपना ग़ुलाम बनाना चाहता था और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। लेकिन उसके इस सपने में सबसे बड़ी बाधा थे राजपूत और उन सभी राजपूतों को हरा पाना अकबर के लिए कतई संभवनहीं था ।

इस वजह से अकबर के सलाहकारों ने उसे राजपूतों की बेटियों के साथ सम्बन्ध बनाने की सलाह दी इसलिए अकबर ने राजपूतों की बेटीयों से विवाह कर उनको अपने आधीन करने की योजना बनाई, जिसमें वह सफल भी हुआ।

अकबर जोधा से ब्याह करके राजा भारमल को पूरी तरह अपने अधीन करना चाहता था आपको बता दें कि जोधा से पहले अकबर कि अनेकों पत्नियाँ थी ।

अकबर ने अपने राज्य विस्तार और विलास के लिए कई हिन्दू राजकुमारियों के साथ विवाह किया था। अकबर एक विलासी और ऐयाश राजा था उसका सुन्दर स्त्रियों का हरम करता था और राजाओं की सुन्दर पत्नियों के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए उनके पतियों को मार देता था ।

जोधा-अकबर की प्रेम कहानी उस वक़्त जान बूझ के चर्चित की गयी थी ताकि बाकि राजपूत भी अपनी बहन बेटियों को मुगलों के साथ विवाह करवाने के लिए आगे आए और ताकि अकबर राजपूत राजकुमारों को अपने अधीन करके उनके साम्राज्य पर कब्ज़ा कर सके ।

अकबर जोधा की निडरता और समझदारी का प्रशंसक था क्यूँकि वो अपनी छवि साफ़ दिखाना चाहता था। लेकिन अपने बुरे आचरण से कभी बाज़ नहीं आया।

अकबर की पत्नियां और रखेल 
हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था. और इस पर भी हमारी हिंदू जाति अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही! अकबर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था ,इसने अपने नाम में मुहम्मद शब्द जोड़ लिया था. जिस से इसका पूरा नाम "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर " हो गया 
लेकिन अकबर ने  कई अधिक औरतें और रखेलें रख ली थीं ,जिन्हें लौंडियाँ कहा जाता है ।
1. सालीमाँ बेगम ,जो अकबर के फूफा बैरम खान की विधवा थी 
2.रूकैय्य बेगम जो अकबर की चचेरी बहिन थी .
3. लोग जोधा बाई को अकबर की तीसरी पत्नी बताते हैं .इसका असली नाम हीरा कुंवरी या रुक्मावती था,यह आम्बेर के राज भारमल की बड़ी बेटी थी.लोग इसी को जोधा कहते हैं .जोधा अकबर से आयु में बड़ी थी .और राजा मानसिंह की बहिन लगती थी ,जिसे अकबर ने अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया था जोधा और अकबर की शादी जयपुर के पास साम्भर नाम की जगह 20 जनवरी सन 1562 को हुई थी .वास्तव में राजा भारमल ने जोधा की डोली भेजी थी . जिसके बदले अकबर ने उसे मनसबदरी दी थी ।

लेकिन वास्तविकता कुछ और है ,अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं.आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे. अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”।
आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है।
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं.

ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था. औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर की की नीति थी .
विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी. वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें

3-अकबर की कुरूपता 
इतिहास की किताबों और मुग़ल काल की पेंटिंग में एक स्वस्थ और रौबदार चहरे वाला सुन्दर व्यक्ति चित्रित किया जाता,लेकिन,“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”

4-अकबर की धर्म निरपेक्षता
आजकल बच्चों को इतिहास की किताबों में पढाया जाता है ,कि अकबर सभी धर्मों का आदर करता था . और यहाँ तक कि उसने जोधा बाई को भी एक मंदिर भी बनवा दिया था ,जिसने वह हिन्दू रीती के अनुसार पूजा ,आरती और कृष्ण की भक्ति किया करती थी ,यही" मुगले आजम " पिक्चर में भी दिखाया था .जो के.आसिफ ने बनायीं थी . लेकिन वास्तविकता यह है कि जोधा से शादी के कुछ समय बाद अकबर ने जोधा को मुसलमान बना दिया था . और उसका इस्लामी नाम ",मरियम उज्जमानी ( ﻣﺮﻳﻢ ﺍﺯﻣﺎﻧﻲ) रख दिया था .और 6 फरवरी सन1562को इसलामी तरीके से निकाह पढ़ लिया था .और इसीलिए जब जोधा मर गयी तो उसका हिन्दू रीती से दाह संस्कार नहीं किया गया,बल्कि एक मुस्लिम की तरह दफना दिया गया.आज भी जोधा की कबर अकबर की कबर जो सिकन्दरा में है उस से से कुछ किलोमीटर बनी है ,देखी जा सकती है .यही नहीं अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था ,चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रखता . और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो ,काजी ने उसे टोक दिया .इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर दिया।

4-बादशाह की रहमदिली 
अकबर को न्यायी दयालु नरमदिल बताते हैं ,लेकिन यह भी झूठ है ,क्योंकि,जब 6नवम्बर 1556को 14साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था. हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया. उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी. तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महानके सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गया. इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयी जो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है.हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला. और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गया
चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया।
2सितम्बर 1573के दिन अहमदाबाद में उसने2000दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का ही था
 अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा!अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे. यह फिर से एक नया कीर्तिमान था. जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया.अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया. हमजबान की जबान ही कटवा डाली. मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं. उसके300साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों,भेड़ों औरकुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया. 
विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंगकटवाना, आदि सजाएं भी देते थे।

ऐसे थे अकबर महान ।

Saturday, November 7, 2020

अद्भुत स्थापत्य कला

अकेला कर्नाटक में बेलूर का चेन्नकेशव मंदिर का स्थापत्य और मूर्तिकला इतनी उत्कृष्ट है कि कल्पना नही की जा सकती कि सचमुच हजार साल पहले भारत इस मामले में इतना विकसित रहा होगा।

सोचिए कि औरंगाबाद का कैलाश मन्दिर सिर्फ एक चट्टान से बना है। इसका निर्माण शिखर से शुरू होकर तहखाने तक हुआ।

भारत में एक से एक अद्भुत मन्दिर हैं लेकिन आज़ादी के बाद सांस्कृतिक,ऐतिहासिक संस्थाओं पर वामपंथियों का कब्जा हो गया,जो हिन्दू विरोधी थे,उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रति अपनी घृणा के चलते इन्हें विश्व के सामने या देश के सामने आने नही दिया।


चेन्नकेशव मन्दिर बेलूर।


होयसालेश्वर मन्दिर हलेबीड़ू कर्नाटक।


कैलाशा मन्दिर,एलोरा महाराष्ट्र।

यह मंदिर एक ही चट्टान से बना है।


वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुमला, आंध्र प्रदेश।


मीनाक्षी मन्दिर तमिलनाडु।


मीनाक्षी मन्दिर की बेहतरीन कलाकारी।


विरुपाक्ष मन्दिर हंपी।


चेन्नकेशव मन्दिर की मूर्तिकला।

यह भी


यह भी चेन्नकेशव मन्दिर की कारीगरी का नमूना है।


रामेश्वरम मंदिर।


हलेबीड़ू मन्दिर, कर्नाटका।

ये कुछ ही मन्दिर हैं जो अपनी अद्भुत मूर्तिकला के लिए जाने जाते हैं।

ऐसे हजारों मन्दिर हैं जो श्रद्धालुओं की नजरों से ओझल हुए हैं।

भारत के इतिहास के झूठ

इतिहास विषय में सबसे ज्यादा गलत तथ्यों या शख्सियतों का प्रचार प्रसार किया जाता है और इनमें सबसे ज्यादा मशहूर झूठ है :-

1.) अला उद दीन खिलजी ने हिंदुस्तान को खतरनाक मंगोलो से बचाया

अला उद दींन ने हिंदुस्तान नहीं बल्कि खुद को और अपने साम्राज्य को खुंखार मंगोलो से बचाया क्योंकि अगर मंगोल हिंदुस्तान पे कब्ज़ा कर लेते तो सबसे पहले तो खिलजी और उसके तुर्क अफ़ग़ान दरबारियो को ज़लालत और बर्बरता से बेइज़्ज़त करके मारते जिसके लिए वो कुख्यात थे , अफ़ग़ानिस्तान को तो यह लोग पहले ही मंगोलो के हाथो खो चुके थे इसलिए भाग के जाते भी कहा तो उनके लिए तो यह करो या मरो वाला सवाल था और तो और इन तुर्क अफ़ग़ानों ने कौनसा हिंदुस्तान को प्रताड़ित करने में कोई कसर छोड़ी।

2.) बाबर धर्मनिरपेक्ष शाशक था और हिंदुस्तान में आ के यहाँ का हो गया।

अगर बाबर इसे पढता तो हिन्दुस्तानियो की बेवकूफी पे ठहाका लगा के हस पड़ता। बाबर न कभी धर्मनिरपेक्ष था न उस कभी हिंदुस्तान पसंद था बल्कि उस की आत्मकथा बाबरनामा के माने तो वो भारत की सरज़मीन, नस्ल, मौसम, धर्म सबसे बेइंतहा नफरत करता था।

3.)अकबर महान था।

अकबर महान नहीं बस एक चतुर राजनेता था, एक बार अगर कोई विस्तार से अकबर के बारे में अध्ययन करे तो पायेगा की अकबर को कितना हद से ज़्यादा चढ़ाया गया है, उसकी धर्मनिरपेक्षता के उदहारण दिए जाते है, उसने भले ही जजिया और तीर्थ यात्रा जैसे कर हटाये लेकिन यह महान बादशाह अपनी सहूलियत के हिसाब से इन करो को दोबारा वसूलता था, इससे मालूम चलता है कि अकबर की धरनिर्पेक्षता इसकी आर्थिक हालात पर निर्भर करती थी।

साथ ही साथ अकबर की घिनोनी हरकते और काण्ड जैसे दारूबाजी, अफीमी, अत्यधिक कामुकता, मीना बाजार का काण्ड, अनेक नरसंघार, बच्चियो का यौन शोषण को कितनी चालाकी से छुपा दिया जाता है, ऐसा लंपट नशेड़ी कभी भी महान तो नहीं हो सकता।

4.) महाराणा प्रताप ने अकबर के हाथों अपना साम्राज्य खो दिया और भगोड़े के तरह जंगल में बाकि जीवन व्यतीत किया।

भारत के इतिहास में इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई होगा, हमे बताया जाता है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद हार मान ली और बाकि ज़िन्दगी भगोड़ों की तरह जी जबकि असलियत यह है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने भी कभी हार नहीं मानी और अंतिम सांस तक मुघलो से लोहा लेते रहे और अपनी जीवन के अंत तक 90 प्रतिशत मेवाड़ को मुघलो की गिरफ्त से आज़ाद करवा लिया था।

5.) औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाया

औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाने की कोशिश ज़रूर की परंतु कामयाब नहीं हो सका, दक्खन हमेशा मुग़ल सरदारों के लिए क़ब्रगाह के नाम से मशहूर रहा क्योंकि कहा जाता है जो भी मुग़ल सरदार दक्खन में स्थान्तरित किया गया मुँह की खाके ही लौटा और कई तो अपनी जान से हाथ धो बैठे और दक्खन हमेशा मुघलो के गिरफ्त से बहार ही रहा।

कहा जाता है जब औरंगजेब अपनी मृत्युशय्या पे लेटा था और अपनी आखरी सांसे गिन रहा था तो उसने अपने दक्खन के मंसूबो को अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती माना था।

6.) मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग था।

बिलकुल गलत! मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग नहीं बल्कि आदिम युग था, हर विदेशी यात्री ने मुग़ल काल में भारत के आम जन में गरीबी और शासन वर्ग की अय्याशी और अत्याचार के बखान दिए है, देश का असली स्वर्ण युग गुप्त और मौर्य शासन था जब हर विदेशी यात्री ने देश की अमीरी और सम्पन्नता के बखान दिए थे।

और भी कई झूठ है जो हमे इतिहास में पढ़ाए जाते है, यह सबसे ज़्यादा प्रचलित है।

Tuesday, November 3, 2020

जनरल सगत सिंह राठौड़। PAK के करवाए 2 टुकड़े,

 जनरल सगत सिंह राठौड़। 

यह नाम है बहादुरी का। भारत के श्रेष्ठ फील्ड कमांडर और सबसे कामयाब सेनानायक का। जनरल सगत सिंह राजस्थान के वो बहादुर फौजी बेटे थे, जिनसे पूरी पाक और चीनी सेना खौफ खाती थी। पड़ोसी देशों की सेना के अलावा पुतगाली भी इनसे थरथर कांपते थे। वो बहादुर फौजी बेटा जिसने PAK के करवाए 2 टुकड़े, गोवा को 40 घंटे में कराया मुक्त

चूरू के कुसुमदेसर गांव में जन्मे जनरल सगत सिंह

राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। उनके पिता ठाकुर बृजपाल सिंह ने बिकानेर की प्रसिद्ध कैमल कोर में अपनी सेवा दी थी और पहले विश्वयुद्ध में इराक में लड़े थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई वॉल्टर्स नोबल स्कूल, बिकानेर से की और बाद में डुंगर कॉलेज, बिकानेर में दाखिला लिया लेकिन अपनी ग्रेजुएशन कभी पूरी नहीं की। स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की।


दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई।

जब गोवा में किया पुर्तगाली शासन का अंत



आजादी के बाद सन 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्रवाई हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना। 1965 में ब्रिगेडियर सगत सिंह को मेजर जनरल के तौर पर नियुक्ति देकर जनरल आफिसर 17 माउंटेन डिवीजन की कमांड दे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया। वहां चीन की चेतावनी से अविचलित होकर सगत सिंह ने अपना काम जारी रखा और नाथू ला को खाली न करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है अन्यथा चीन इस पर कब्जा कर लेता।


पाक सेना के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर करवाया



वर्ष 1967 में मेजर जनरल सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशॉ ने मिजोरम में अलगाववादियों से लड़ने की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1970 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति देकर 4 कोर्प्स के जनरल आफिसर कमांडिंग के तौर पर तेजपुर में नियुक्ति दी गई। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह ने बेहतरीन युद्ध कौशल और रणनीति का परिचय दिया तथा युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने छाताधारी ब्रिगेड की मदद से विशाल नदी पार करने का कारनामा कर दिखाया। यह जनरल सगत सिंह के अति साहसी निर्णयों से ही संभव हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश आजाद हुआ। इस युदध के बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांगलादेश अस्तित्व में आया। सैन्य इतिहासकार मेजर चंद्रकांत सिंह बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय सगत सिंह को देते हैं।

सेना का वह अफसर जिसने बिना प्रधानमंत्री की परमिशन के 1967 में चीनी सैनिकों पर बरसा दिए थे तोप के गोले


लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच सोमवार को हुए खूनी संघर्ष ने 1967 में नाथू ला में हुई जंग की याद ताजा कर दी। उस दौरान सिक्किम के पास नाथू ला में तैनात जनरल सगत सिंह राठौड़ ने सीमा पर पैदा हुए हालात के मुताबिक फैसला लेकर चीनी सेना को जोरदार सबक सिखाया था। दिल्ली से आदेश मिलने का इंतजार करने के बजाय जनरल ने अपनी तोपों का मुंह खुलवा दिया। तीन दिन चली जबर्दस्त लड़ाई में चीन के 300 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए।

अचानक एक सीटी बजी और चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर ऑटोमेटिक फायर शुरू कर दिया। राय सिंह को तीन गोलियां लगीं। मिनटों में ही जितने भी भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे या काम कर रहे थे, शहीद हो गए। फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि भारतीयों को अपने घायलों तक को उठाने का मौका नहीं मिला। हताहतों की संख्या इसलिए भी अधिक थी क्योंकि भारत के सभी सैनिक बाहर थे और वहां आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी। 

जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी फायरिंग कर रहे हैं। उस समय तोप की फायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास था। यहां तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फैसला लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फायर खुलवा दिया। इसके बाद लड़ाई शुरू हो गई जो तीन दिन तक चली।

जनरल सगत सिंह ने नीचे से मध्यम दूरी की तोपें मंगवाईं और चीनी ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिक ऊंचाई पर थे और उन्हें चीनी ठिकाने साफ नजर आ रहे थे, इसलिए उनके गोले निशाने पर गिर रहे थे। जवाब में चीनी भी फायर कर रहे थे। उनकी फायरिंग अंधाधुंध थी, क्योंकि वे नीचे से भारतीय सैनिकों को नहीं देख पा रहे थे। इससे चीन को बहुत नुकसान हुआ और उनके 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए।

चार दिन बाद यह लड़ाई खत्म हुई। जनरल वीके सिंह ने भी इस बारे में अपनी किताब में लिखा है कि 1962 की लड़ाई के बाद भारतीय सेना के जवानों में चीन की जो दहशत हो गई थी वो हमेशा के लिए जाती रही। भारत के जवानों को पता लग गया कि वो भी चीनियों को मार सकता है। 




जनरल सगत सिंह ने 26 सितंबर 2001 को ली अंतिम सांस

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ।


बरसती गोलियों के बीच हेलीकॉप्टर लेकर उतरे

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान वे हेलीकॉप्टर से लड़ाई का जायजा लेने जाते थे और युद्ध स्थल पर ही लैंड कर जाते थे। इस तरह के मुआयने के दौरान ही एक बार उनके हेलीकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियां चलाई जिसमें पायलट भी बुरी तरह जख्मी हो गया। ऎसी स्थिति में सह पायलट ने नियंत्रण संभाला और हेलीकॉप्टर वापस अगरतला आया। बाद में जांच में पता चला कि हेलीकॉप्टर में गोलियों से 64 सुराख हो गए लेकिन फिर भी जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर न हुआ और वे एक दूसरा हेलीकॉप्टर लेकर निरीक्षण पर निकल पड़े। उनकी बहादुरी के अनेक किस्से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं और युद्ध की चर्चाओं में गर्व के साथ सुनाए जाते हैं।

Sunday, November 1, 2020

प्रतिहार , गौङ ,बल्ला ,दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि

 



वंश – सूर्य वंश
गोत्र – कपिल
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजस्नेयी
प्रवर – कश्यप, अप्सार, नैधुव
उपवेद – धनुर्वेद
कुल देवी – चामुंडा माता
वर देवी – गाजन माता
कुल देव – विष्णु भगवान
सूत्र – पारासर
शिखा – दाहिनी
कुलगुरु – वशिष्ट
निकास – उत्तर
प्रमुख गादी – भीनमाल, मंडोर,कन्नोज
ध्वज – लाल (सूर्य चिन्ह युक्त)
वॄक्ष – सिरस
पितर – नाहङराव, लूलर गोपालजी
नदी – सरस्वती
तीर्थ – पुष्कर राज
मन्त्र – गायत्री जाप
पक्षी – गरुड़
नगारा – रणजीत
चारण – लालस
ढोली – सोनेलिया लाखणिया विरद – गुजरेश्वर, राणा ,




गौङ वंश के गोत्र-प्रवरादि

वंश – सूर्य वंश
गोत्र — भारद्वाज
प्रवर तीन – भारद्वाज,बाईस्पत्य, अंगिरस
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयि
सूत्र – पारस्कर
कुलदेवी – महाकाली
इष्टदेव – रुद्रदेव
वॄक्ष – केला



बल्ला वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – इक्ष्वाकु-सुर्यवंश
गोत्र – कश्यप
प्रवर – कश्यप, अवत्सार, नेधृव
वेद – यजुर्वेद
शाखा – माध्यन्दिनी
आचारसुत्र – गोभिलग्रहासूत्र
गुरु – वशिष्ठ
ऋषि – कुण्डलेश्वर
पितृ – पारियात्र
कुलदेवी – अम्बा, कालिका, चावण्ड
इष्टदेव – शिव
आराध्यदेव – कासब पुत्र सूर्य
मन्त्र – ॐ धृणी सूर्याय नम:
भेरू – काल भेरू
नदी – सरयू
क्षेत्र – बल क्षेत्र
वॄक्ष – अक्षय
प्रणाम – जय श्री राम



दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – सूर्य वंश बाद में ऋषि वंश
गोत्र – गोतम
प्रवर – अलो, नील-जल साम
कुल देवी – कैवाय माता
इष्टदेव – भेरू काला
कुल देव – महादेव
कुल क्षेत्र – काशी
राव – चंडिया-एरो
घोड़ा – श्याम कर्ण
नगारा – रणजीत
नदी – गंगा
कुल वृक्ष – नीम और कदम
पोलपात – काछेला चारण
निकास – थानेर गढ
उपाधि – राजा, राणा, रावत
पक्षी – कबूतर
ब्राह्मण – उपाध्याय
तलवार – रण थली
प्रणाम – जय कैवाय माता
गाय – सुर
शगुन – पणिहारी
वेद – यजुर्वेद j
निशान – पंच रंगी
शाखा – वाजसनेयी
भेरव – हर्शनाथ

झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – सूर्य वंश
गोत्र – मार्कण्डेय
शाखा – मध्यनी
कुल – मकवान(मकवाणा)
पर्व तीन – अश्व, धमल, नील
कुलदेवी – दुर्गा,मरमरा देवी,शक्तिमाता
इष्टदेव – छत्रभुज महादेव
भेरव – केवडीया
कुलगोर – मशीलीया राव
शाखाए – झाला,राणा

सोलंकी वंश का गोत्र-प्रवरादि



वंश – अग्निवंश
गोत्र – वशिष्ठ, भारदाज
प्रवर तीन – भारदाज, बार्हस्पत्य, अंगिरस
वेद – यजुर्वेद
शाखा – मध्यन्दिनी
सूत्र – पारस्कर, ग्रहासूत्र
इष्टदेव – विष्णु
कुलदेवी – चण्डी, काली, खीवज
नदी – सरस्वती
धर्म – वैष्णव
गादी – पाटन
उत्पति – आबू पर्वत
मूल पुरुष – चालुक्य देव
निशान – पीला
राव – लूतापड़ा
घोड़ा – जर्द
ढोली – बहल
शिखापद – दाहिना
दशहरा पूजन – खांडा

भाटी वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – चन्द्रवंश
कुल – यदुवंशी
कुलदेवता – लक्ष्मी नाथ जी
कुलदेवी – स्वागिया माता
इष्टदेव – श्री कृष्ण
वेद – यजुर्वेद
गोत्र – अत्रि
छत्र – मेघाडम्भर
ध्वज – भगवा पीला रंग
ढोल – भंवर
नक्कारा – अगजीत
गुरु – रतन नाथ
पुरोहित – पुष्करणा ब्राह्मण
पोलपात – रतनु चारण
नदी – यमुना
वॄक्ष – पीपल
राग – मांड
विरुद – उतर भड किवाड़ भाटी
प्रणाम – जय श्री कृष्ण

कछवाह वंश के गोत्र-प्रवरादि



गोत्र – मानव, गोतम
प्रवर – मानव, वशिष्ठ
कुलदेव – श्री राम
कुलदेवी – श्री जमुवाय माता जी
इष्टदेवी – श्री जीणमाता जी
इष्टदेव – श्री गोपीनाथ जी
वेद – सामवेद
शाखा – कोथुमी
नदी – सरयू
वॄक्ष – अखेबड़
नगारा – रणजीत
निशान – पंचरंगा
छत्र – श्वेत
पक्षी – कबूतर
तिलक – केशर
झाड़ी – खेजड़ी
गुरु – वशिष्ठ
भोजन – सुर्त
गिलास – सुख
पुरोहित – गंगावत, भागीरथ

Featured Post

प्रेरणादायक अनमोल वचन

जब आप कुछ गँवा बैठते है ,तो उससे प्राप्त शिक्षा को ना गवाएं बल्कि उसके द्वारा प्राप्त शिक्षा का भविष्य में इस्तेमाल करें | – दलाई लामा ज...