Tuesday, November 3, 2020

जनरल सगत सिंह राठौड़। PAK के करवाए 2 टुकड़े,

 जनरल सगत सिंह राठौड़। 

यह नाम है बहादुरी का। भारत के श्रेष्ठ फील्ड कमांडर और सबसे कामयाब सेनानायक का। जनरल सगत सिंह राजस्थान के वो बहादुर फौजी बेटे थे, जिनसे पूरी पाक और चीनी सेना खौफ खाती थी। पड़ोसी देशों की सेना के अलावा पुतगाली भी इनसे थरथर कांपते थे। वो बहादुर फौजी बेटा जिसने PAK के करवाए 2 टुकड़े, गोवा को 40 घंटे में कराया मुक्त

चूरू के कुसुमदेसर गांव में जन्मे जनरल सगत सिंह

राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। उनके पिता ठाकुर बृजपाल सिंह ने बिकानेर की प्रसिद्ध कैमल कोर में अपनी सेवा दी थी और पहले विश्वयुद्ध में इराक में लड़े थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई वॉल्टर्स नोबल स्कूल, बिकानेर से की और बाद में डुंगर कॉलेज, बिकानेर में दाखिला लिया लेकिन अपनी ग्रेजुएशन कभी पूरी नहीं की। स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की।


दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई।

जब गोवा में किया पुर्तगाली शासन का अंत



आजादी के बाद सन 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्रवाई हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना। 1965 में ब्रिगेडियर सगत सिंह को मेजर जनरल के तौर पर नियुक्ति देकर जनरल आफिसर 17 माउंटेन डिवीजन की कमांड दे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया। वहां चीन की चेतावनी से अविचलित होकर सगत सिंह ने अपना काम जारी रखा और नाथू ला को खाली न करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है अन्यथा चीन इस पर कब्जा कर लेता।


पाक सेना के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर करवाया



वर्ष 1967 में मेजर जनरल सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशॉ ने मिजोरम में अलगाववादियों से लड़ने की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1970 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति देकर 4 कोर्प्स के जनरल आफिसर कमांडिंग के तौर पर तेजपुर में नियुक्ति दी गई। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह ने बेहतरीन युद्ध कौशल और रणनीति का परिचय दिया तथा युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने छाताधारी ब्रिगेड की मदद से विशाल नदी पार करने का कारनामा कर दिखाया। यह जनरल सगत सिंह के अति साहसी निर्णयों से ही संभव हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश आजाद हुआ। इस युदध के बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांगलादेश अस्तित्व में आया। सैन्य इतिहासकार मेजर चंद्रकांत सिंह बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय सगत सिंह को देते हैं।

सेना का वह अफसर जिसने बिना प्रधानमंत्री की परमिशन के 1967 में चीनी सैनिकों पर बरसा दिए थे तोप के गोले


लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच सोमवार को हुए खूनी संघर्ष ने 1967 में नाथू ला में हुई जंग की याद ताजा कर दी। उस दौरान सिक्किम के पास नाथू ला में तैनात जनरल सगत सिंह राठौड़ ने सीमा पर पैदा हुए हालात के मुताबिक फैसला लेकर चीनी सेना को जोरदार सबक सिखाया था। दिल्ली से आदेश मिलने का इंतजार करने के बजाय जनरल ने अपनी तोपों का मुंह खुलवा दिया। तीन दिन चली जबर्दस्त लड़ाई में चीन के 300 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए।

अचानक एक सीटी बजी और चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर ऑटोमेटिक फायर शुरू कर दिया। राय सिंह को तीन गोलियां लगीं। मिनटों में ही जितने भी भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे या काम कर रहे थे, शहीद हो गए। फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि भारतीयों को अपने घायलों तक को उठाने का मौका नहीं मिला। हताहतों की संख्या इसलिए भी अधिक थी क्योंकि भारत के सभी सैनिक बाहर थे और वहां आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी। 

जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी फायरिंग कर रहे हैं। उस समय तोप की फायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास था। यहां तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फैसला लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फायर खुलवा दिया। इसके बाद लड़ाई शुरू हो गई जो तीन दिन तक चली।

जनरल सगत सिंह ने नीचे से मध्यम दूरी की तोपें मंगवाईं और चीनी ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिक ऊंचाई पर थे और उन्हें चीनी ठिकाने साफ नजर आ रहे थे, इसलिए उनके गोले निशाने पर गिर रहे थे। जवाब में चीनी भी फायर कर रहे थे। उनकी फायरिंग अंधाधुंध थी, क्योंकि वे नीचे से भारतीय सैनिकों को नहीं देख पा रहे थे। इससे चीन को बहुत नुकसान हुआ और उनके 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए।

चार दिन बाद यह लड़ाई खत्म हुई। जनरल वीके सिंह ने भी इस बारे में अपनी किताब में लिखा है कि 1962 की लड़ाई के बाद भारतीय सेना के जवानों में चीन की जो दहशत हो गई थी वो हमेशा के लिए जाती रही। भारत के जवानों को पता लग गया कि वो भी चीनियों को मार सकता है। 




जनरल सगत सिंह ने 26 सितंबर 2001 को ली अंतिम सांस

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ।


बरसती गोलियों के बीच हेलीकॉप्टर लेकर उतरे

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान वे हेलीकॉप्टर से लड़ाई का जायजा लेने जाते थे और युद्ध स्थल पर ही लैंड कर जाते थे। इस तरह के मुआयने के दौरान ही एक बार उनके हेलीकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियां चलाई जिसमें पायलट भी बुरी तरह जख्मी हो गया। ऎसी स्थिति में सह पायलट ने नियंत्रण संभाला और हेलीकॉप्टर वापस अगरतला आया। बाद में जांच में पता चला कि हेलीकॉप्टर में गोलियों से 64 सुराख हो गए लेकिन फिर भी जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर न हुआ और वे एक दूसरा हेलीकॉप्टर लेकर निरीक्षण पर निकल पड़े। उनकी बहादुरी के अनेक किस्से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं और युद्ध की चर्चाओं में गर्व के साथ सुनाए जाते हैं।

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