Monday, November 23, 2020

तेग बहादुर की शहीदी

Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas: 

गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति और निर्भीक स्वभाव के थे.
 सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Teg Bahadur) का आज शहीदी दिवस (Shaheedi Diwas) है. गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. पंजाब के अमृतसर (Amritsar) में जन्में गुरु तेग बहादुर सिंह के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह (Guru Hargovind Singh) था. उनके बचपन का नाम त्यागमल (Tyagmal) था. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति, निर्भीक स्वभाव के थे. वह 24 नवंबर, 1675 को शहीद हुए थे. 

झुके नहीं, बलिदान किया स्‍वीकार 

गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने झुके नहींं. इसका नतीजा यह हुआ क‍ि उनका सिर कलम करवा दिया गया. आतंकवादी औरंगजेब ने उन्‍हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में साफ मना कर दिया. गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें 'हिंद दी चादर' के नाम से भी जाना जाता है. बता दें कि दिल्ली का 'शीशंगज गुरुद्वारा' वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था.

कश्मीरी पंडितों के लिए लिया लोहा
गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई जब वह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने  पर तुला हुआ था. कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की मदद ली. इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी इफाजत का जिम्मा अपने सिर से ले लिया. उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया. वहीं गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े. इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया. जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था. वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले. भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को
भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्‍होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया. बता दें कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था.
 
बता दें कि 18 अप्रैल 1621 में जन्में तेग बहादुर करतारपुर की जंग में मुगल सेना के खिलाफ लोहा लेने के बाद उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा. वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है.' 

24 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फतवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से सी' तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोबिंद सिंह जी ने विचित्र नाटक  में लिखा है-
तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥
धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ 
और आज तक यही चल रहा है, परंतु आज के परिदृश्य में हम देखते है की तेग बहादुर जैसे महान ओर साहसी व्यक्ति मिलना लगभग असम्भव हो गया है ।

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इमेज संदर्भ : गूगल





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