Monday, November 23, 2020

तेग बहादुर की शहीदी

Guru Teg Bahadur Shaheedi Diwas: 

गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति और निर्भीक स्वभाव के थे.
 सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर सिंह (Guru Teg Bahadur) का आज शहीदी दिवस (Shaheedi Diwas) है. गुरु तेग बहादुर की पुण्यतिथि (Death Anniversary) को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. पंजाब के अमृतसर (Amritsar) में जन्में गुरु तेग बहादुर सिंह के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह (Guru Hargovind Singh) था. उनके बचपन का नाम त्यागमल (Tyagmal) था. गुरु तेग बहादुर बचपन से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति, निर्भीक स्वभाव के थे. वह 24 नवंबर, 1675 को शहीद हुए थे. 

झुके नहीं, बलिदान किया स्‍वीकार 

गुरु तेग बहादुर औरंगजेब के सामने झुके नहींं. इसका नतीजा यह हुआ क‍ि उनका सिर कलम करवा दिया गया. आतंकवादी औरंगजेब ने उन्‍हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में साफ मना कर दिया. गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें 'हिंद दी चादर' के नाम से भी जाना जाता है. बता दें कि दिल्ली का 'शीशंगज गुरुद्वारा' वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था.

कश्मीरी पंडितों के लिए लिया लोहा
गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई जब वह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने  पर तुला हुआ था. कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की मदद ली. इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी इफाजत का जिम्मा अपने सिर से ले लिया. उनके इस कदम से औरंगजेब गुस्से से भर गया. वहीं गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े. इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया. जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था. वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले. भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को
भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्‍होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया. बता दें कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था.
 
बता दें कि 18 अप्रैल 1621 में जन्में तेग बहादुर करतारपुर की जंग में मुगल सेना के खिलाफ लोहा लेने के बाद उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा. वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है.' 

24 नवंबर, 1675 ई को दिल्ली के चांदनी चौक में काज़ी ने फतवा पढ़ा और जल्लाद जलालदीन ने तलवार करके गुरू साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। किन्तु गुरु तेग़ बहादुर ने अपने मुंह से सी' तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में गुरु गोबिंद सिंह जी ने विचित्र नाटक  में लिखा है-
तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥
धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ 
और आज तक यही चल रहा है, परंतु आज के परिदृश्य में हम देखते है की तेग बहादुर जैसे महान ओर साहसी व्यक्ति मिलना लगभग असम्भव हो गया है ।

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इमेज संदर्भ : गूगल





Friday, November 13, 2020

अकबर की हकीकत


जोधाबाई और भारत के मुगल शासक अकबर की प्रेमकथा देश की सबसे बड़ी प्रेम कहानियों में गिनी जाती है लेकिन ये दोनों पति-पत्नी तो क्या प्रेमी तक नहीं थी। इतिहासकारों और कुछ गाइड्स की गलतफहमी की वजह से अकबर का नाम उन्हीं की बहु जोधाबाई के साथ जोड़ दिया गया। दरअसल जोधाबाई उनके बेटे सलीम उर्फ जहांगीर की पत्नी थी, लेकिन जोधा अकबर की प्रेम कहानी में कोई सच्चाई नहीं है।

जोधा अकबर की प्रेम कहानी अकबर को अच्छा दिखाने के लिए बनाई गई काल्पनिक कहानी ही है। अकबर पूरी दुनिया को अपना ग़ुलाम बनाना चाहता था और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। लेकिन उसके इस सपने में सबसे बड़ी बाधा थे राजपूत और उन सभी राजपूतों को हरा पाना अकबर के लिए कतई संभवनहीं था ।

इस वजह से अकबर के सलाहकारों ने उसे राजपूतों की बेटियों के साथ सम्बन्ध बनाने की सलाह दी इसलिए अकबर ने राजपूतों की बेटीयों से विवाह कर उनको अपने आधीन करने की योजना बनाई, जिसमें वह सफल भी हुआ।

अकबर जोधा से ब्याह करके राजा भारमल को पूरी तरह अपने अधीन करना चाहता था आपको बता दें कि जोधा से पहले अकबर कि अनेकों पत्नियाँ थी ।

अकबर ने अपने राज्य विस्तार और विलास के लिए कई हिन्दू राजकुमारियों के साथ विवाह किया था। अकबर एक विलासी और ऐयाश राजा था उसका सुन्दर स्त्रियों का हरम करता था और राजाओं की सुन्दर पत्नियों के साथ सम्बन्ध बनाने के लिए उनके पतियों को मार देता था ।

जोधा-अकबर की प्रेम कहानी उस वक़्त जान बूझ के चर्चित की गयी थी ताकि बाकि राजपूत भी अपनी बहन बेटियों को मुगलों के साथ विवाह करवाने के लिए आगे आए और ताकि अकबर राजपूत राजकुमारों को अपने अधीन करके उनके साम्राज्य पर कब्ज़ा कर सके ।

अकबर जोधा की निडरता और समझदारी का प्रशंसक था क्यूँकि वो अपनी छवि साफ़ दिखाना चाहता था। लेकिन अपने बुरे आचरण से कभी बाज़ नहीं आया।

अकबर की पत्नियां और रखेल 
हकीकत यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था. और इस पर भी हमारी हिंदू जाति अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही! अकबर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था ,इसने अपने नाम में मुहम्मद शब्द जोड़ लिया था. जिस से इसका पूरा नाम "जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर " हो गया 
लेकिन अकबर ने  कई अधिक औरतें और रखेलें रख ली थीं ,जिन्हें लौंडियाँ कहा जाता है ।
1. सालीमाँ बेगम ,जो अकबर के फूफा बैरम खान की विधवा थी 
2.रूकैय्य बेगम जो अकबर की चचेरी बहिन थी .
3. लोग जोधा बाई को अकबर की तीसरी पत्नी बताते हैं .इसका असली नाम हीरा कुंवरी या रुक्मावती था,यह आम्बेर के राज भारमल की बड़ी बेटी थी.लोग इसी को जोधा कहते हैं .जोधा अकबर से आयु में बड़ी थी .और राजा मानसिंह की बहिन लगती थी ,जिसे अकबर ने अपने नवरत्नों में शामिल कर लिया था जोधा और अकबर की शादी जयपुर के पास साम्भर नाम की जगह 20 जनवरी सन 1562 को हुई थी .वास्तव में राजा भारमल ने जोधा की डोली भेजी थी . जिसके बदले अकबर ने उसे मनसबदरी दी थी ।

लेकिन वास्तविकता कुछ और है ,अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं.आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी. दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे. अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी. कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था. एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”।
आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है।
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं.

ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था. औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर की की नीति थी .
विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी. वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें

3-अकबर की कुरूपता 
इतिहास की किताबों और मुग़ल काल की पेंटिंग में एक स्वस्थ और रौबदार चहरे वाला सुन्दर व्यक्ति चित्रित किया जाता,लेकिन,“अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था”

4-अकबर की धर्म निरपेक्षता
आजकल बच्चों को इतिहास की किताबों में पढाया जाता है ,कि अकबर सभी धर्मों का आदर करता था . और यहाँ तक कि उसने जोधा बाई को भी एक मंदिर भी बनवा दिया था ,जिसने वह हिन्दू रीती के अनुसार पूजा ,आरती और कृष्ण की भक्ति किया करती थी ,यही" मुगले आजम " पिक्चर में भी दिखाया था .जो के.आसिफ ने बनायीं थी . लेकिन वास्तविकता यह है कि जोधा से शादी के कुछ समय बाद अकबर ने जोधा को मुसलमान बना दिया था . और उसका इस्लामी नाम ",मरियम उज्जमानी ( ﻣﺮﻳﻢ ﺍﺯﻣﺎﻧﻲ) रख दिया था .और 6 फरवरी सन1562को इसलामी तरीके से निकाह पढ़ लिया था .और इसीलिए जब जोधा मर गयी तो उसका हिन्दू रीती से दाह संस्कार नहीं किया गया,बल्कि एक मुस्लिम की तरह दफना दिया गया.आज भी जोधा की कबर अकबर की कबर जो सिकन्दरा में है उस से से कुछ किलोमीटर बनी है ,देखी जा सकती है .यही नहीं अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था ,चूँकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रखता . और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो ,काजी ने उसे टोक दिया .इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर दिया।

4-बादशाह की रहमदिली 
अकबर को न्यायी दयालु नरमदिल बताते हैं ,लेकिन यह भी झूठ है ,क्योंकि,जब 6नवम्बर 1556को 14साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था. हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया. उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी. तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महानके सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गया. इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयी जो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है.हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला. और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गया
चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया।
2सितम्बर 1573के दिन अहमदाबाद में उसने2000दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का ही था
 अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा!अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे. यह फिर से एक नया कीर्तिमान था. जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया.अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया. हमजबान की जबान ही कटवा डाली. मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गयीं. उसके300साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों,भेड़ों औरकुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया. 
विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंगकटवाना, आदि सजाएं भी देते थे।

ऐसे थे अकबर महान ।

Saturday, November 7, 2020

अद्भुत स्थापत्य कला

अकेला कर्नाटक में बेलूर का चेन्नकेशव मंदिर का स्थापत्य और मूर्तिकला इतनी उत्कृष्ट है कि कल्पना नही की जा सकती कि सचमुच हजार साल पहले भारत इस मामले में इतना विकसित रहा होगा।

सोचिए कि औरंगाबाद का कैलाश मन्दिर सिर्फ एक चट्टान से बना है। इसका निर्माण शिखर से शुरू होकर तहखाने तक हुआ।

भारत में एक से एक अद्भुत मन्दिर हैं लेकिन आज़ादी के बाद सांस्कृतिक,ऐतिहासिक संस्थाओं पर वामपंथियों का कब्जा हो गया,जो हिन्दू विरोधी थे,उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रति अपनी घृणा के चलते इन्हें विश्व के सामने या देश के सामने आने नही दिया।


चेन्नकेशव मन्दिर बेलूर।


होयसालेश्वर मन्दिर हलेबीड़ू कर्नाटक।


कैलाशा मन्दिर,एलोरा महाराष्ट्र।

यह मंदिर एक ही चट्टान से बना है।


वेंकटेश्वर मन्दिर तिरुमला, आंध्र प्रदेश।


मीनाक्षी मन्दिर तमिलनाडु।


मीनाक्षी मन्दिर की बेहतरीन कलाकारी।


विरुपाक्ष मन्दिर हंपी।


चेन्नकेशव मन्दिर की मूर्तिकला।

यह भी


यह भी चेन्नकेशव मन्दिर की कारीगरी का नमूना है।


रामेश्वरम मंदिर।


हलेबीड़ू मन्दिर, कर्नाटका।

ये कुछ ही मन्दिर हैं जो अपनी अद्भुत मूर्तिकला के लिए जाने जाते हैं।

ऐसे हजारों मन्दिर हैं जो श्रद्धालुओं की नजरों से ओझल हुए हैं।

भारत के इतिहास के झूठ

इतिहास विषय में सबसे ज्यादा गलत तथ्यों या शख्सियतों का प्रचार प्रसार किया जाता है और इनमें सबसे ज्यादा मशहूर झूठ है :-

1.) अला उद दीन खिलजी ने हिंदुस्तान को खतरनाक मंगोलो से बचाया

अला उद दींन ने हिंदुस्तान नहीं बल्कि खुद को और अपने साम्राज्य को खुंखार मंगोलो से बचाया क्योंकि अगर मंगोल हिंदुस्तान पे कब्ज़ा कर लेते तो सबसे पहले तो खिलजी और उसके तुर्क अफ़ग़ान दरबारियो को ज़लालत और बर्बरता से बेइज़्ज़त करके मारते जिसके लिए वो कुख्यात थे , अफ़ग़ानिस्तान को तो यह लोग पहले ही मंगोलो के हाथो खो चुके थे इसलिए भाग के जाते भी कहा तो उनके लिए तो यह करो या मरो वाला सवाल था और तो और इन तुर्क अफ़ग़ानों ने कौनसा हिंदुस्तान को प्रताड़ित करने में कोई कसर छोड़ी।

2.) बाबर धर्मनिरपेक्ष शाशक था और हिंदुस्तान में आ के यहाँ का हो गया।

अगर बाबर इसे पढता तो हिन्दुस्तानियो की बेवकूफी पे ठहाका लगा के हस पड़ता। बाबर न कभी धर्मनिरपेक्ष था न उस कभी हिंदुस्तान पसंद था बल्कि उस की आत्मकथा बाबरनामा के माने तो वो भारत की सरज़मीन, नस्ल, मौसम, धर्म सबसे बेइंतहा नफरत करता था।

3.)अकबर महान था।

अकबर महान नहीं बस एक चतुर राजनेता था, एक बार अगर कोई विस्तार से अकबर के बारे में अध्ययन करे तो पायेगा की अकबर को कितना हद से ज़्यादा चढ़ाया गया है, उसकी धर्मनिरपेक्षता के उदहारण दिए जाते है, उसने भले ही जजिया और तीर्थ यात्रा जैसे कर हटाये लेकिन यह महान बादशाह अपनी सहूलियत के हिसाब से इन करो को दोबारा वसूलता था, इससे मालूम चलता है कि अकबर की धरनिर्पेक्षता इसकी आर्थिक हालात पर निर्भर करती थी।

साथ ही साथ अकबर की घिनोनी हरकते और काण्ड जैसे दारूबाजी, अफीमी, अत्यधिक कामुकता, मीना बाजार का काण्ड, अनेक नरसंघार, बच्चियो का यौन शोषण को कितनी चालाकी से छुपा दिया जाता है, ऐसा लंपट नशेड़ी कभी भी महान तो नहीं हो सकता।

4.) महाराणा प्रताप ने अकबर के हाथों अपना साम्राज्य खो दिया और भगोड़े के तरह जंगल में बाकि जीवन व्यतीत किया।

भारत के इतिहास में इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई होगा, हमे बताया जाता है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद हार मान ली और बाकि ज़िन्दगी भगोड़ों की तरह जी जबकि असलियत यह है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने भी कभी हार नहीं मानी और अंतिम सांस तक मुघलो से लोहा लेते रहे और अपनी जीवन के अंत तक 90 प्रतिशत मेवाड़ को मुघलो की गिरफ्त से आज़ाद करवा लिया था।

5.) औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाया

औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाने की कोशिश ज़रूर की परंतु कामयाब नहीं हो सका, दक्खन हमेशा मुग़ल सरदारों के लिए क़ब्रगाह के नाम से मशहूर रहा क्योंकि कहा जाता है जो भी मुग़ल सरदार दक्खन में स्थान्तरित किया गया मुँह की खाके ही लौटा और कई तो अपनी जान से हाथ धो बैठे और दक्खन हमेशा मुघलो के गिरफ्त से बहार ही रहा।

कहा जाता है जब औरंगजेब अपनी मृत्युशय्या पे लेटा था और अपनी आखरी सांसे गिन रहा था तो उसने अपने दक्खन के मंसूबो को अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती माना था।

6.) मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग था।

बिलकुल गलत! मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग नहीं बल्कि आदिम युग था, हर विदेशी यात्री ने मुग़ल काल में भारत के आम जन में गरीबी और शासन वर्ग की अय्याशी और अत्याचार के बखान दिए है, देश का असली स्वर्ण युग गुप्त और मौर्य शासन था जब हर विदेशी यात्री ने देश की अमीरी और सम्पन्नता के बखान दिए थे।

और भी कई झूठ है जो हमे इतिहास में पढ़ाए जाते है, यह सबसे ज़्यादा प्रचलित है।

Tuesday, November 3, 2020

जनरल सगत सिंह राठौड़। PAK के करवाए 2 टुकड़े,

 जनरल सगत सिंह राठौड़। 

यह नाम है बहादुरी का। भारत के श्रेष्ठ फील्ड कमांडर और सबसे कामयाब सेनानायक का। जनरल सगत सिंह राजस्थान के वो बहादुर फौजी बेटे थे, जिनसे पूरी पाक और चीनी सेना खौफ खाती थी। पड़ोसी देशों की सेना के अलावा पुतगाली भी इनसे थरथर कांपते थे। वो बहादुर फौजी बेटा जिसने PAK के करवाए 2 टुकड़े, गोवा को 40 घंटे में कराया मुक्त

चूरू के कुसुमदेसर गांव में जन्मे जनरल सगत सिंह

राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। उनके पिता ठाकुर बृजपाल सिंह ने बिकानेर की प्रसिद्ध कैमल कोर में अपनी सेवा दी थी और पहले विश्वयुद्ध में इराक में लड़े थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई वॉल्टर्स नोबल स्कूल, बिकानेर से की और बाद में डुंगर कॉलेज, बिकानेर में दाखिला लिया लेकिन अपनी ग्रेजुएशन कभी पूरी नहीं की। स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की।


दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई।

जब गोवा में किया पुर्तगाली शासन का अंत



आजादी के बाद सन 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्रवाई हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना। 1965 में ब्रिगेडियर सगत सिंह को मेजर जनरल के तौर पर नियुक्ति देकर जनरल आफिसर 17 माउंटेन डिवीजन की कमांड दे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया। वहां चीन की चेतावनी से अविचलित होकर सगत सिंह ने अपना काम जारी रखा और नाथू ला को खाली न करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है अन्यथा चीन इस पर कब्जा कर लेता।


पाक सेना के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर करवाया



वर्ष 1967 में मेजर जनरल सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशॉ ने मिजोरम में अलगाववादियों से लड़ने की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1970 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति देकर 4 कोर्प्स के जनरल आफिसर कमांडिंग के तौर पर तेजपुर में नियुक्ति दी गई। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह ने बेहतरीन युद्ध कौशल और रणनीति का परिचय दिया तथा युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने छाताधारी ब्रिगेड की मदद से विशाल नदी पार करने का कारनामा कर दिखाया। यह जनरल सगत सिंह के अति साहसी निर्णयों से ही संभव हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश आजाद हुआ। इस युदध के बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांगलादेश अस्तित्व में आया। सैन्य इतिहासकार मेजर चंद्रकांत सिंह बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय सगत सिंह को देते हैं।

सेना का वह अफसर जिसने बिना प्रधानमंत्री की परमिशन के 1967 में चीनी सैनिकों पर बरसा दिए थे तोप के गोले


लद्दाख की गलवान घाटी में भारत-चीन सैनिकों के बीच सोमवार को हुए खूनी संघर्ष ने 1967 में नाथू ला में हुई जंग की याद ताजा कर दी। उस दौरान सिक्किम के पास नाथू ला में तैनात जनरल सगत सिंह राठौड़ ने सीमा पर पैदा हुए हालात के मुताबिक फैसला लेकर चीनी सेना को जोरदार सबक सिखाया था। दिल्ली से आदेश मिलने का इंतजार करने के बजाय जनरल ने अपनी तोपों का मुंह खुलवा दिया। तीन दिन चली जबर्दस्त लड़ाई में चीन के 300 से ज्यादा सैनिक हताहत हुए।

अचानक एक सीटी बजी और चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर ऑटोमेटिक फायर शुरू कर दिया। राय सिंह को तीन गोलियां लगीं। मिनटों में ही जितने भी भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे या काम कर रहे थे, शहीद हो गए। फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि भारतीयों को अपने घायलों तक को उठाने का मौका नहीं मिला। हताहतों की संख्या इसलिए भी अधिक थी क्योंकि भारत के सभी सैनिक बाहर थे और वहां आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी। 

जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी फायरिंग कर रहे हैं। उस समय तोप की फायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास था। यहां तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फैसला लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फायर खुलवा दिया। इसके बाद लड़ाई शुरू हो गई जो तीन दिन तक चली।

जनरल सगत सिंह ने नीचे से मध्यम दूरी की तोपें मंगवाईं और चीनी ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिक ऊंचाई पर थे और उन्हें चीनी ठिकाने साफ नजर आ रहे थे, इसलिए उनके गोले निशाने पर गिर रहे थे। जवाब में चीनी भी फायर कर रहे थे। उनकी फायरिंग अंधाधुंध थी, क्योंकि वे नीचे से भारतीय सैनिकों को नहीं देख पा रहे थे। इससे चीन को बहुत नुकसान हुआ और उनके 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए।

चार दिन बाद यह लड़ाई खत्म हुई। जनरल वीके सिंह ने भी इस बारे में अपनी किताब में लिखा है कि 1962 की लड़ाई के बाद भारतीय सेना के जवानों में चीन की जो दहशत हो गई थी वो हमेशा के लिए जाती रही। भारत के जवानों को पता लग गया कि वो भी चीनियों को मार सकता है। 




जनरल सगत सिंह ने 26 सितंबर 2001 को ली अंतिम सांस

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ।


बरसती गोलियों के बीच हेलीकॉप्टर लेकर उतरे

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान वे हेलीकॉप्टर से लड़ाई का जायजा लेने जाते थे और युद्ध स्थल पर ही लैंड कर जाते थे। इस तरह के मुआयने के दौरान ही एक बार उनके हेलीकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियां चलाई जिसमें पायलट भी बुरी तरह जख्मी हो गया। ऎसी स्थिति में सह पायलट ने नियंत्रण संभाला और हेलीकॉप्टर वापस अगरतला आया। बाद में जांच में पता चला कि हेलीकॉप्टर में गोलियों से 64 सुराख हो गए लेकिन फिर भी जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर न हुआ और वे एक दूसरा हेलीकॉप्टर लेकर निरीक्षण पर निकल पड़े। उनकी बहादुरी के अनेक किस्से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं और युद्ध की चर्चाओं में गर्व के साथ सुनाए जाते हैं।

Sunday, November 1, 2020

प्रतिहार , गौङ ,बल्ला ,दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि

 



वंश – सूर्य वंश
गोत्र – कपिल
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजस्नेयी
प्रवर – कश्यप, अप्सार, नैधुव
उपवेद – धनुर्वेद
कुल देवी – चामुंडा माता
वर देवी – गाजन माता
कुल देव – विष्णु भगवान
सूत्र – पारासर
शिखा – दाहिनी
कुलगुरु – वशिष्ट
निकास – उत्तर
प्रमुख गादी – भीनमाल, मंडोर,कन्नोज
ध्वज – लाल (सूर्य चिन्ह युक्त)
वॄक्ष – सिरस
पितर – नाहङराव, लूलर गोपालजी
नदी – सरस्वती
तीर्थ – पुष्कर राज
मन्त्र – गायत्री जाप
पक्षी – गरुड़
नगारा – रणजीत
चारण – लालस
ढोली – सोनेलिया लाखणिया विरद – गुजरेश्वर, राणा ,




गौङ वंश के गोत्र-प्रवरादि

वंश – सूर्य वंश
गोत्र — भारद्वाज
प्रवर तीन – भारद्वाज,बाईस्पत्य, अंगिरस
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयि
सूत्र – पारस्कर
कुलदेवी – महाकाली
इष्टदेव – रुद्रदेव
वॄक्ष – केला



बल्ला वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – इक्ष्वाकु-सुर्यवंश
गोत्र – कश्यप
प्रवर – कश्यप, अवत्सार, नेधृव
वेद – यजुर्वेद
शाखा – माध्यन्दिनी
आचारसुत्र – गोभिलग्रहासूत्र
गुरु – वशिष्ठ
ऋषि – कुण्डलेश्वर
पितृ – पारियात्र
कुलदेवी – अम्बा, कालिका, चावण्ड
इष्टदेव – शिव
आराध्यदेव – कासब पुत्र सूर्य
मन्त्र – ॐ धृणी सूर्याय नम:
भेरू – काल भेरू
नदी – सरयू
क्षेत्र – बल क्षेत्र
वॄक्ष – अक्षय
प्रणाम – जय श्री राम



दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – सूर्य वंश बाद में ऋषि वंश
गोत्र – गोतम
प्रवर – अलो, नील-जल साम
कुल देवी – कैवाय माता
इष्टदेव – भेरू काला
कुल देव – महादेव
कुल क्षेत्र – काशी
राव – चंडिया-एरो
घोड़ा – श्याम कर्ण
नगारा – रणजीत
नदी – गंगा
कुल वृक्ष – नीम और कदम
पोलपात – काछेला चारण
निकास – थानेर गढ
उपाधि – राजा, राणा, रावत
पक्षी – कबूतर
ब्राह्मण – उपाध्याय
तलवार – रण थली
प्रणाम – जय कैवाय माता
गाय – सुर
शगुन – पणिहारी
वेद – यजुर्वेद j
निशान – पंच रंगी
शाखा – वाजसनेयी
भेरव – हर्शनाथ

झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – सूर्य वंश
गोत्र – मार्कण्डेय
शाखा – मध्यनी
कुल – मकवान(मकवाणा)
पर्व तीन – अश्व, धमल, नील
कुलदेवी – दुर्गा,मरमरा देवी,शक्तिमाता
इष्टदेव – छत्रभुज महादेव
भेरव – केवडीया
कुलगोर – मशीलीया राव
शाखाए – झाला,राणा

सोलंकी वंश का गोत्र-प्रवरादि



वंश – अग्निवंश
गोत्र – वशिष्ठ, भारदाज
प्रवर तीन – भारदाज, बार्हस्पत्य, अंगिरस
वेद – यजुर्वेद
शाखा – मध्यन्दिनी
सूत्र – पारस्कर, ग्रहासूत्र
इष्टदेव – विष्णु
कुलदेवी – चण्डी, काली, खीवज
नदी – सरस्वती
धर्म – वैष्णव
गादी – पाटन
उत्पति – आबू पर्वत
मूल पुरुष – चालुक्य देव
निशान – पीला
राव – लूतापड़ा
घोड़ा – जर्द
ढोली – बहल
शिखापद – दाहिना
दशहरा पूजन – खांडा

भाटी वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – चन्द्रवंश
कुल – यदुवंशी
कुलदेवता – लक्ष्मी नाथ जी
कुलदेवी – स्वागिया माता
इष्टदेव – श्री कृष्ण
वेद – यजुर्वेद
गोत्र – अत्रि
छत्र – मेघाडम्भर
ध्वज – भगवा पीला रंग
ढोल – भंवर
नक्कारा – अगजीत
गुरु – रतन नाथ
पुरोहित – पुष्करणा ब्राह्मण
पोलपात – रतनु चारण
नदी – यमुना
वॄक्ष – पीपल
राग – मांड
विरुद – उतर भड किवाड़ भाटी
प्रणाम – जय श्री कृष्ण

कछवाह वंश के गोत्र-प्रवरादि



गोत्र – मानव, गोतम
प्रवर – मानव, वशिष्ठ
कुलदेव – श्री राम
कुलदेवी – श्री जमुवाय माता जी
इष्टदेवी – श्री जीणमाता जी
इष्टदेव – श्री गोपीनाथ जी
वेद – सामवेद
शाखा – कोथुमी
नदी – सरयू
वॄक्ष – अखेबड़
नगारा – रणजीत
निशान – पंचरंगा
छत्र – श्वेत
पक्षी – कबूतर
तिलक – केशर
झाड़ी – खेजड़ी
गुरु – वशिष्ठ
भोजन – सुर्त
गिलास – सुख
पुरोहित – गंगावत, भागीरथ

चौहान वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – अग्निवंश
वेद – सामवेद
गोत्र – वत्स
वॄक्ष – आशापाल
नदी – सरस्वती
पोलपात – द्सोदी
इष्टदेव – अचलेश्वर महादेव
कुल देवी – आशापुरा
नगारा – रणजीत
निशान – पीला
झंडा – सूरज, चांद, कटारी
शाखा – कौथुनी
पुरोहित – सनादय(चन्दोरिया)
भाट – राजोरा
धुणी – सांभर
भेरू – काला भेरव
गढ़ – रणथम्भोर
गुरु – वशिष्ठ
तीर्थ – भॄगु क्षेत्र
पक्षी – कपोत
ऋषि – शांडिल्य
नोबत – कालिका
पितृ – लोटजी
प्रणाम – जय आशापुरी
विरद – समरी नरेश

गुहिलोत(सिसोदिया) वंश के गोत्र प्रवरादि

 


वंश – सूर्यवंशी,गुहिलवंश,सिसोदिया,
शक्तावत
गोत्र – वैजवापायन
प्रवर – कच्छ, भुज, मेंष
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयी
गुरु – द्लोचन(वशिष्ठ)
ऋषि – हरित
कुलदेवी – बाण माता
कुल देवता – श्री सूर्य नारायण
इष्ट देव – श्री एकलिंगजी
वॄक्ष – खेजड़ी
नदी – सरयू
झंडा – सूर्य युक्त
पुरोहित – पालीवाल
भाट – बागड़ेचा
चारण – सोदा बारहठ
ढोल – मेगजीत
तलवार – अश्वपाल
बंदूक – सिंघल
कटार – दल भंजन
नगारा – बेरीसाल
पक्षी – नील कंठ
निशान – पंच रंगा
निर्वाण – रणजीत
घोड़ा – श्याम कर्ण
तालाब – भोडाला
विरद – चुण्डावत, सारंगदेवोत
घाट – सोरम
ठिकाना – भिंडर
चिन्ह – सूर्य
शाखाए – 24

परमार वंश के गोत्र-प्रवरादि

  परमार वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – अग्निवंश
कुल – सोढा परमार
गोत्र – वशिष्ठ
प्रवर – वशिष्ठ, अत्रि ,साकृति
वेद – यजुर्वेद
उपवेद – धनुर्वेद
शाखा – वाजसनयि
प्रथम राजधानी – उज्जेन (मालवा)
कुलदेवी – सच्चियाय माता
इष्टदेव – सूर्यदेव महादेव
तलवार – रणतरे
ढाल – हरियण
निशान – केसरी सिंह
ध्वजा – पीला रंग
गढ – आबू
शस्त्र – भाला
गाय – कवली
वृक्ष – कदम्ब,पीपल
नदी – सफरा (क्षिप्रा)
पाघ – पंचरंगी
राजयोगी – भर्तहरी
संत – जाम्भोजी
पक्षी – मयूर
प्रमुख गादी – धार नगरी

तंवर (तोमर) वंश के गोत्र-प्रवरादि

  तंवर (तोमर) वंश के गोत्र-प्रवरादि



वंश – चंद्रवंशी
कुल देवी – चिल्लाय माता
शाखा – मधुनेक,वाजस्नेयी
गोत्र – अत्रि, व्यागर, गागर्य
प्रवर – गागर्य,कौस्तुभ,माडषय
शिखा – दाहिनी
भेरू – गौरा
शस्त्र – खड़ग
ध्वज – पंचरगा
पुरोहित – भिवाल
बारहठ – आपत केदार वंशी
ढोली – रोहतान जात का
स्थान – पाटा मानस सरोवर
कुल वॄक्ष – गुल्लर
प्रणाम – जय गोपाल
निशान – कपि(चील),चन्द्रमा
ढोल – भंवर
नगारा – रणजीत/जय, विजय, अजय
घोड़ा – श्वते
निकास – हस्तिनापुर
प्रमुख गदी – इन्द्रप्रस्थ,दिल्ली
रंग – हरा
नाई – क़ाला
चमार – भारीवाल
शंख – पिचारक
नदी – सरस्वति,तुंगभद्रा
वेद – यजुर्वेद
सवारी – रथ
देवता – शिव
गुरु – सूर्य
उपाधि – जावला नरेश.दिल्लीपति

राजपूतों की वंशावली /Rajput Vanshavali



 "दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,

चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण

भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान

चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."

अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय दस चन्द्र वंशीय,बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है,बाद में भौमवंश नागवंश क्षत्रियों को सामने करने के बाद जब चौहान वंश चौबीस अलग अलग वंशों में जाने लगा तब क्षत्रियों के बासठ अंशों का पमाण मिलता है।
सूर्य वंश की दस शाखायें:-
१. कछवाह२. राठौड ३. बडगूजर४. सिकरवार५. सिसोदिया ६.गहलोत ७.गौर ८.गहलबार ९.रेकबार १०.जुनने
चन्द्र वंश की दस शाखायें:-
१.जादौन२.भाटी३.तोमर४.चन्देल५.छोंकर६.होंड७.पुण्डीर८.कटैरिया९.स्वांगवंश १०.वैस
अग्निवंश की चार शाखायें:-
१.चौहान२.सोलंकी३.परिहार ४.पमार.
ऋषिवंश की बारह शाखायें:-
१.सेंगर२.दीक्षित३.दायमा४.गौतम५.अनवार (राजा जनक के वंशज)६.विसेन७.करछुल८.हय९.अबकू तबकू १०.कठोक्स ११.द्लेला १२.बुन्देला
चौहान वंश की चौबीस शाखायें:-
१.हाडा २.खींची ३.सोनीगारा ४.पाविया ५.पुरबिया ६.संचौरा ७.मेलवाल८.भदौरिया ९.निर्वाण १०.मलानी ११.धुरा १२.मडरेवा १३.सनीखेची १४.वारेछा १५.पसेरिया १६.बालेछा १७.रूसिया १८.चांदा१९.निकूम २०.भावर २१.छछेरिया २२.उजवानिया २३.देवडा २४.बनकर.
क्षत्रिय जातियो की सूची
क्रमांक नाम गोत्र वंश स्थान और जिला
१. सूर्यवंशी भारद्वाज सूर्य बुलन्दशहर आगरा मेरठ अलीगढ
२. गहलोत बैजवापेण सूर्य मथुरा कानपुर और पूर्वी जिले
३. सिसोदिया बैजवापेड सूर्य महाराणा उदयपुर स्टेट
४. कछवाहा मानव सूर्य महाराजा जयपुर और ग्वालियर राज्य
५. राठोड कश्यप सूर्य जोधपुर बीकानेर और पूर्व और मालवा
६. सोमवंशी अत्रय चन्द प्रतापगढ और जिला हरदोई
७. यदुवंशी अत्रय चन्द राजकरौली राजपूताने में
८. भाटी अत्रय जादौन महारजा जैसलमेर राजपूताना
९. जाडेचा अत्रय यदुवंशी महाराजा कच्छ भुज
१०. जादवा अत्रय जादौन शाखा अवा. कोटला ऊमरगढ आगरा
११. तोमर व्याघ्र चन्द पाटन के राव तंवरघार जिला ग्वालियर
१२. कटियार व्याघ्र तोंवर धरमपुर का राज और हरदोई
१३. पालीवार व्याघ्र तोंवर गोरखपुर
१४. परिहार कौशल्य अग्नि इतिहास में जानना चाहिये
१५. तखी कौशल्य परिहार पंजाब कांगडा जालंधर जम्मू में
१६. पंवार वशिष्ठ अग्नि मालवा मेवाड धौलपुर पूर्व मे बलिया
१७. सोलंकी भारद्वाज अग्नि राजपूताना मालवा सोरों जिला एटा
१८. चौहान वत्स अग्नि राजपूताना पूर्व और सर्वत्र
१९. हाडा वत्स चौहान कोटा बूंदी और हाडौती देश
२०. खींची वत्स चौहान खींचीवाडा मालवा ग्वालियर
२१. भदौरिया वत्स चौहान नौगंवां पारना आगरा इटावा गालियर
२२. देवडा वत्स चौहान राजपूताना सिरोही राज
२३. शम्भरी वत्स चौहान नीमराणा रानी का रायपुर पंजाब
२४. बच्छगोत्री वत्स चौहान प्रतापगढ सुल्तानपुर
२५. राजकुमार वत्स चौहान दियरा कुडवार फ़तेहपुर जिला
२६. पवैया वत्स चौहान ग्वालियर
२७. गौर,गौड भारद्वाज सूर्य शिवगढ रायबरेली कानपुर लखनऊ
२८. वैस भारद्वाज चन्द्र उन्नाव रायबरेली मैनपुरी पूर्व में
२९. गेहरवार कश्यप सूर्य माडा हरदोई उन्नाव बांदा पूर्व
३०. सेंगर गौतम ब्रह्मक्षत्रिय जगम्बनपुर भरेह इटावा जालौन
३१. कनपुरिया भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय पूर्व में राजाअवध के जिलों में हैं
३२. बिसैन वत्स ब्रह्मक्षत्रिय गोरखपुर गोंडा प्रतापगढ में हैं
३३. निकुम्भ वशिष्ठ सूर्य गोरखपुर आजमगढ हरदोई जौनपुर
३४. सिरसेत भारद्वाज सूर्य गाजीपुर बस्ती गोरखपुर
३५. कटहरिया वशिष्ठ्याभारद्वाज, सूर्य बरेली बंदायूं मुरादाबाद शहाजहांपुर
३६. वाच्छिल अत्रयवच्छिल चन्द्र मथुरा बुलन्दशहर शाहजहांपुर
३७. बढगूजर वशिष्ठ सूर्य अनूपशहर एटा अलीगढ मैनपुरी मुरादाबाद हिसार गुडगांव जयपुर
३८. झाला मरीच कश्यप चन्द्र धागधरा मेवाड झालावाड कोटा
३९. गौतम गौतम ब्रह्मक्षत्रिय राजा अर्गल फ़तेहपुर
४०. रैकवार भारद्वाज सूर्य बहरायच सीतापुर बाराबंकी
४१. करचुल हैहय कृष्णात्रेय चन्द्र बलिया फ़ैजाबाद अवध
४२. चन्देल चान्द्रायन चन्द्रवंशी गिद्धौर कानपुर फ़र्रुखाबाद बुन्देलखंड पंजाब गुजरात
४३. जनवार कौशल्य सोलंकी शाखा बलरामपुर अवध के जिलों में
४४. बहरेलिया भारद्वाज वैस की गोद सिसोदिया रायबरेली बाराबंकी
४५. दीत्तत कश्यप सूर्यवंश की शाखा उन्नाव बस्ती प्रतापगढ जौनपुर रायबरेली बांदा
४६. सिलार शौनिक चन्द्र सूरत राजपूतानी
४७. सिकरवार भारद्वाज बढगूजर ग्वालियर आगरा और उत्तरप्रदेश में
४८. सुरवार गर्ग सूर्य कठियावाड में
४९. सुर्वैया वशिष्ठ यदुवंश काठियावाड
५०. मोरी ब्रह्मगौतम सूर्य मथुरा आगरा धौलपुर
५१. टांक (तत्तक) शौनिक नागवंश मैनपुरी और पंजाब
५२. गुप्त गार्ग्य चन्द्र अब इस वंश का पता नही है
५३. कौशिक कौशिक चन्द्र बलिया आजमगढ गोरखपुर
५४. भृगुवंशी भार्गव चन्द्र वनारस बलिया आजमगढ गोरखपुर
५५. गर्गवंशी गर्ग ब्रह्मक्षत्रिय नृसिंहपुर सुल्तानपुर
५६. पडियारिया, देवल,सांकृतसाम ब्रह्मक्षत्रिय राजपूताना
५७. ननवग कौशल्य चन्द्र जौनपुर जिला
५८. वनाफ़र पाराशर,कश्यप चन्द्र बुन्देलखन्ड बांदा वनारस
५९. जैसवार कश्यप यदुवंशी मिर्जापुर एटा मैनपुरी
६०. चौलवंश भारद्वाज सूर्य दक्षिण मद्रास तमिलनाडु कर्नाटक में
६१. निमवंशी कश्यप सूर्य संयुक्त प्रांत
६२. वैनवंशी वैन्य सोमवंशी मिर्जापुर
६३. दाहिमा गार्गेय ब्रह्मक्षत्रिय काठियावाड राजपूताना
६४. पुण्डीर कपिल ब्रह्मक्षत्रिय पंजाब गुजरात रींवा यू.पी.
६५. तुलवा आत्रेय चन्द्र राजाविजयनगर
६६. कटोच कश्यप भूमिवंश राजानादौन कोटकांगडा
६७. चावडा,पंवार,चोहान,वर्तमान कुमावत वशिष्ठ पंवार की शाखा मलवा रतलाम उज्जैन गुजरात मेवाड
६८. अहवन वशिष्ठ चावडा,कुमावत खेरी हरदोई सीतापुर बारांबंकी
६९. डौडिया वशिष्ठ पंवार शाखा बुलंदशहर मुरादाबाद बांदा मेवाड गल्वा पंजाब
७०. गोहिल बैजबापेण गहलोत शाखा काठियावाड
७१. बुन्देला कश्यप गहरवारशाखा बुन्देलखंड के रजवाडे
७२. काठी कश्यप गहरवारशाखा काठियावाड झांसी बांदा
७३. जोहिया पाराशर चन्द्र पंजाब देश मे
७४. गढावंशी कांवायन चन्द्र गढावाडी के लिंगपट्टम में
७५. मौखरी अत्रय चन्द्र प्राचीन राजवंश था
७६. लिच्छिवी कश्यप सूर्य प्राचीन राजवंश था
७७. बाकाटक विष्णुवर्धन सूर्य अब पता नहीं चलता है
७८. पाल कश्यप सूर्य यह वंश सम्पूर्ण भारत में बिखर गया है
७९. सैन अत्रय ब्रह्मक्षत्रिय यह वंश भी भारत में बिखर गया है
८०. कदम्ब मान्डग्य ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण महाराष्ट्र मे हैं
८१. पोलच भारद्वाज ब्रह्मक्षत्रिय दक्षिण में मराठा के पास में है
८२. बाणवंश कश्यप असुरवंश श्री लंका और दक्षिण भारत में,कैन्या जावा में
८३. काकुतीय भारद्वाज चन्द्र,प्राचीन सूर्य था अब पता नही मिलता है
८४. सुणग वंश भारद्वाज चन्द्र,पाचीन सूर्य था, अब पता नही मिलता है
८५. दहिया कश्यप राठौड शाखा मारवाड में जोधपुर
८६. जेठवा कश्यप हनुमानवंशी राजधूमली काठियावाड
८७. मोहिल वत्स चौहान शाखा महाराष्ट्र मे है
८८. बल्ला भारद्वाज सूर्य काठियावाड मे मिलते हैं
८९. डाबी वशिष्ठ यदुवंश राजस्थान
९०. खरवड वशिष्ठ यदुवंश मेवाड उदयपुर
९१. सुकेत भारद्वाज गौड की शाखा पंजाब में पहाडी राजा
९२. पांड्य अत्रय चन्द अब इस वंश का पता नहीं
९३. पठानिया पाराशर वनाफ़रशाखा पठानकोट राजा पंजाब
९४. बमटेला शांडल्य विसेन शाखा हरदोई फ़र्रुखाबाद
९५. बारहगैया वत्स चौहान गाजीपुर
९६. भैंसोलिया वत्स चौहान भैंसोल गाग सुल्तानपुर
९७. चन्दोसिया भारद्वाज वैस सुल्तानपुर
९८. चौपटखम्ब कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर
९९. धाकरे भारद्वाज(भृगु) ब्रह्मक्षत्रिय आगरा मथुरा मैनपुरी इटावा हरदोई बुलन्दशहर
१००. धन्वस्त यमदाग्नि ब्रह्मक्षत्रिय जौनपुर आजमगढ वनारस
१०१. धेकाहा कश्यप पंवार की शाखा भोजपुर शाहाबाद
१०२. दोबर(दोनवर) वत्स या कश्यप ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर बलिया आजमगढ गोरखपुर
१०३. हरद्वार भार्गव चन्द्र शाखा आजमगढ
१०४. जायस कश्यप राठौड की शाखा रायबरेली मथुरा
१०५. जरोलिया व्याघ्रपद चन्द्र बुलन्दशहर
१०६. जसावत मानव्य कछवाह शाखा मथुरा आगरा
१०७. जोतियाना(भुटियाना) मानव्य कश्यप,कछवाह शाखा मुजफ़्फ़रनगर मेरठ
१०८. घोडेवाहा मानव्य कछवाह शाखा लुधियाना होशियारपुर जालन्धर
१०९. कछनिया शान्डिल्य ब्रह्मक्षत्रिय अवध के जिलों में
११०. काकन भृगु ब्रह्मक्षत्रिय गाजीपुर आजमगढ
१११. कासिब कश्यप कछवाह शाखा शाहजहांपुर
११२. किनवार कश्यप सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार में
११३. बरहिया गौतम सेंगर की शाखा पूर्व बंगाल और बिहार
११४. लौतमिया भारद्वाज बढगूजर शाखा बलिया गाजी पुर शाहाबाद
११५. मौनस मानव्य कछवाह शाखा मिर्जापुर प्रयाग जौनपुर
११६. नगबक मानव्य कछवाह शाखा जौनपुर आजमगढ मिर्जापुर
११७. पलवार व्याघ्र सोमवंशी शाखा आजमगढ फ़ैजाबाद गोरखपुर
११८. रायजादे पाराशर चन्द्र की शाखा पूर्व अवध में
११९. सिंहेल कश्यप सूर्य आजमगढ परगना मोहम्दाबाद
१२०. तरकड कश्यप दीक्षित शाखा आगरा मथुरा
१२१. तिसहिया कौशल्य परिहार इलाहाबाद परगना हंडिया
१२२. तिरोता कश्यप तंवर की शाखा आरा शाहाबाद भोजपुर
१२३. उदमतिया वत्स ब्रह्मक्षत्रिय आजमगढ गोरखपुर
१२४. भाले वशिष्ठ पंवार अलीगढ
१२५. भालेसुल्तान भारद्वाज वैस की शाखा रायबरेली लखनऊ उन्नाव
१२६. जैवार व्याघ्र तंवर की शाखा दतिया झांसी बुन्देलखंड
१२७. सरगैयां व्याघ्र सोमवंश हमीरपुर बुन्देलखण्ड
१२८. किसनातिल अत्रय तोमरशाखा दतिया बुन्देलखंड
१२९. टडैया भारद्वाज सोलंकीशाखा झांसी ललितपुर बुन्देलखंड
१३०. खागर अत्रय यदुवंश शाखा जालौन हमीरपुर झांसी
१३१. पिपरिया भारद्वाज गौडों की शाखा बुन्देलखंड
१३२. सिरसवार अत्रय चन्द्र शाखा बुन्देलखंड
१३३. खींचर वत्स चौहान शाखा फ़तेहपुर में असौंथड राज्य
१३४. खाती कश्यप दीक्षित शाखा बुन्देलखंड,राजस्थान में कम संख्या होने के कारण इन्हे बढई गिना जाने लगा
१३५. आहडिया बैजवापेण गहलोत आजमगढ
१३६. उदावत बैजवापेण गहलोत आजमगढ
१३७. उजैने वशिष्ठ पंवार आरा डुमरिया
१३८. अमेठिया भारद्वाज गौड अमेठी लखनऊ सीतापुर
१३९. दुर्गवंशी कश्यप दीक्षित राजा जौनपुर राजाबाजार
१४०. बिलखरिया कश्यप दीक्षित प्रतापगढ उमरी राजा
१४१. डोमरा कश्यप सूर्य कश्मीर राज्य और बलिया
१४२. निर्वाण वत्स चौहान राजपूताना (राजस्थान)
१४३. जाटू व्याघ्र तोमर राजस्थान,हिसार पंजाब
१४४. नरौनी मानव्य कछवाहा बलिया आरा
१४५. भनवग भारद्वाज कनपुरिया जौनपुर
१४६. गिदवरिया वशिष्ठ पंवार बिहार मुंगेर भागलपुर
१४७. रक्षेल कश्यप सूर्य रीवा राज्य में बघेलखंड
१४८. कटारिया भारद्वाज सोलंकी झांसी मालवा बुन्देलखंड
१४९. रजवार वत्स चौहान पूर्व मे बुन्देलखंड
१५०. द्वार व्याघ्र तोमर जालौन झांसी हमीरपुर
१५१. इन्दौरिया व्याघ्र तोमर आगरा मथुरा बुलन्दशहर
१५२. छोकर अत्रय यदुवंश अलीगढ मथुरा बुलन्दशहर
१५३. जांगडा वत्स चौहान बुलन्दशहर पूर्व में झांसी

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जब आप कुछ गँवा बैठते है ,तो उससे प्राप्त शिक्षा को ना गवाएं बल्कि उसके द्वारा प्राप्त शिक्षा का भविष्य में इस्तेमाल करें | – दलाई लामा ज...