Sunday, March 14, 2021

काग दही पर जान गँवायो

जो हमारे दिमाग में चल रहा होता है,जैसी अच्छी बुरी भावना उस वस्तु या व्यक्ति विशेष के प्रति रखते हैं,उसी दृष्टि से हम आस पास का आकलन करते हैं और अपनी बात को सबके सामने रखते हैं।

जो जैसा देखना चाहता है,पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर देखता है।निम्नलिखित कहानी से स्पष्ट हो जाएगाः

एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे,जलेबी और दही ली और वहीं खाने बैठ गये। इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब,पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।

- ये घटना देख कवि हृदय जगा।वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।

"काग दही पर जान गँवायो"

दही में चोंच मारने के कारण कौए को अपनी जान गंवानी पड़ी।

- तभी वहां एक लेखपाल महोदय जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे,पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा,कितनी सही बात लिखी है! क्योंकि उन्होने उसे कुछ इस तरह पढ़ा-

"कागद ही पर जान गंवायो"

लेखपाल महोदय के दिमाग में उनके कागज चल रहे थे,अतः उन्हें काग दही कागद ही पढ़ने में आए।

- तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी है काश उसे ये पहले पता होती, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था-

"का गदही पर जान गंवायो"

उस मजनूँ ने लड़की के कारण मार खाई।कष्ट होने पर लड़के को लड़की गदही जैसी लगने लगी।उसने दुखी होकर इस पंक्ति को वैसे पढ़ा।
---------------------
शायद इसीलिए तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था,
"जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"।

हम वह नहीं देखते,जो सच में होता है।हम वह देखते हैं,जो हम देखना चाहते हैं।

ठीक इसी प्रकार ईश्वर की मूर्ति भी हमारे भावों का दर्पण होती है।सबको अपना अपना इष्ट भी वैसा ही नजर आता है,जैसे जैसे हमारे भाव और विचार उसके प्रति होते हैं।

No comments:

Post a Comment

Featured Post

प्रेरणादायक अनमोल वचन

जब आप कुछ गँवा बैठते है ,तो उससे प्राप्त शिक्षा को ना गवाएं बल्कि उसके द्वारा प्राप्त शिक्षा का भविष्य में इस्तेमाल करें | – दलाई लामा ज...