कोई उम्मीद बर नहीं आती !
कोई सूरत नज़र नहीं आती !!
नींद क्यों रात भर नहीं आती !!
आगे आती थी हाल-ए-दिल पर हसी !
अब किसी बात पर नहीं आती !!
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद !
पर तबियत इधर नहीं आती !!
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ !
वरना क्या बात कर नहीं आती ?
क्यों न चीखू कि याद करते है !
मेरी आवाज़ गर नहीं आती !!
दाग़-ए-दिल गर नज़र नहीं आता !
बू भी ऐ चारागर नहीं आती !!
हम वहा है जहाँ से हमको भी !
कुछ हमारी खबर नहीं आती !!
मरते है आरजू में मरने की !
मौत आती है पर नहीं आती !!
काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब !
शर्म तुमको मगर नहीं आती ! - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
मुअय्यन = नियत, सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद = संयम तथा उपासना, चारागर = चिकित्सक
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