Sunday, September 5, 2021

अष्टावक्र

 अष्टावक्र का अर्थ है, आठ जगहों से मुड़ा हुआ। अष्ठावक्र नाम का एक ऋषि थे, जिनका शरीर आठ जगहों से मुड़ा हुआ था। वे अष्ठावक्र गीता के लिए जाने जाते है। इनके शरीर के इस अवस्था के पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

उद्दालक नाम का एक ऋषि था और उसका एक प्रिय शिष्य था कहोद । उद्दालक ने अपने अपने प्रिय शिष्य कहोद की शादी अपनी बेटी सुजाता के साथ कर दिया। कुछ महीनों बाद सुजाता गर्भवती हो गई। एक दिन ऋषि कहोद शास्त्र का पठन कर रहे थे और उनसे पठन में गलती हो गई। तो गर्भ से उनके बेटे ने उन्हें टोक दिया कि वे शास्त्र का गलत पाठ कर रहे है। इस बात से गुस्सा होकर ऋषि कहोद ने अपने ही बेटे को इस अपमान के लिए श्राप दे दिया कि वो विकंलाग के रुप में जन्म लेगा और वो आठ जगहों से उसका शरीर टेड़ा होगा।

कुछ दिनों बाद ऋषि कहोद शास्त्र के लिए राजा जनक के दरबार में गए, जहां उन्हें ऋषि बंदी को शास्त्रार्थ में हराना था। जो व्यक्ति ऋषि बंदी से हार जाता था,उन्हें दंड स्वरूप पानी में डुबा दिया जाता था। यहीं हाल ऋषि कहोद का हुआ। वे हार गए और पानी में डुबो दिए गए।

इधर कहोद का बेटा , सुजाता के गर्भ से जन्म लिया। चुंकि श्राप के कारण उसका शरीर आठ जगहों से टेड़ा पैदा हुआ तो उन्हें अष्टावक्र का नाम मिला। बारह साल तक अष्टावक्र ने अपने नाना उद्दालक से शिक्षा ली। तब उन्हें अपने पिता और ऋषि बंदी के बारे में पता चला। उन्होंने इसका बदला लेने के लिए ऋषि बंदी से शास्त्रार्थ करने का निश्चय किया,और वे राजा जनक के दरबार में चले गए।

अष्टावक्र का कुरूप स्वरूप देखकर महल के सैनिक उस पर हंसने लगे। इस पर अष्टावक्र ने जवाब दिया कि इंसान की पहचान उसकी उम्र या रूप से नहीं बल्कि उसकी बुद्धि से होती है। बहुत कम ही समय में अष्टावक्र ने ऋषि बंदी को शास्त्रार्थ में हरा दिया। अब शर्त के अनुसार ऋषि बंदी को पानी में डुबाया जाना था। इस पर ऋषि बंधी अपने असली स्वरूप में आए और कहा कि ‘मैं वरुण देव का पुत्र हूं। मुझे मेरे पिता ने धरती पर मौजूद उच्च संतों को भेजने के लिए कहा था ताकि वह एक यज्ञ पूरा कर पाएं। अब जब मेरे पिता का यज्ञ संपन्न हो चुका है तब जितने भी ऋषियों को उन्होंने पानी में डुबोया था वे नदी के बांध से वापस आ जाएंगे’।

ऋषि कहोद वापस आए और उन्होंने अपने बेटे अष्टावक्र को श्राप से मुक्त किया। अष्टावक्र को विकंलागता से मुक्ति मिल गई।

अष्टावक्र गीता में अष्टावक्र और राजा जनक के बीच का संवाद है, जो हमें जीने की कला सिखाती है। इस किताब को रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को पढ़ने को दिया था।

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