Tuesday, December 22, 2020

दुर्गो की प्रकार



1. पारिख दुर्ग:-  वह दुर्ग जिसके चारों और गहरी खाई हो पारिख दुर्ग की श्रेणी में आता है

 उदाहरण:-  भरतपुर का किला, डीग, लोहागढ़ व बीकानेर का जूनागढ़ का दुर्ग है 

जल(उदक) दुर्ग:- वह दुर्ग अथवा किला जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ हो जल दुर्ग कहलाता है

 उदाहरण:- गागरोण ,मनोहरथाना (झालावाड़), व भैंसरोड़गढ़ (चित्तौड़गढ़), शेरगढ़

 गिरीदुर्ग:- वह दुर्ग एवं किला जो चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हो , जल दुर्ग कहलाता है |
 राजस्थान में सर्वाधिक दुर्ग इस श्रेणी में आते हैं 

धान्वन/भूमि दुर्ग:-  वह दुर्गा अथवा किला जिसके चारों ओर मरुस्थलों | 

 उदाहरण:- जैसलमेर का दुर्ग , भटनेर का किला (यह किला जलदुर्ग भी है), अकबर का किला, नागौर का किला, बीकानेर का किला, चोमू का किला (चौमुहांगढ़) आदि

वन दुर्ग:- वह दुर्ग विचारों और सेवाओं से अथवा कांटेदार वृक्ष से ढका हुआ हो |

उदाहरण :- जालोर का दुर्ग , शेरगढ़ (जलदुर्ग भी है )

सहाय दुर्ग:- सहाय दुर्ग में शूरवीर एवं सदा अनुकूल रहने वाले बांधव लोग रहते थे | चित्तौड़ , जालौर तथा सिवाना दुर्ग सहाय दूर की श्रेणी में आते हैं

सैन्य दुर्ग:- जिसकी व्यूह  रचना में चतुर वीरों के होने से अभेध हो यह दुर्ग सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है 

एरण दुर्ग :-  जिस दुर्ग का मार्ग कांटों और पत्थरों से परिपूर्ण हो 

उदाहरण:- रणथंभोर दुर्ग

 पारिध दुर्ग:- वह दुर्ग जिसके चारों ओर ईट, पत्थर और मिट्टी के बने बड़ी-बड़ी दीवारों का परकोटा हो

उदाहरण:- चित्तौड़गढ़ दुर्ग, कुंभलगढ़ दुर्ग 

काग मुखी:-  दुर्ग जो आगे की ओर गढ़ में प्रवेश मार्ग बिल्कुल साकड़ा और पीछे की ओर फैला हुआ है

 उदाहरण:- जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग 

पाशीब :- किले की प्राचीर से हमला करने के लिए रेत और अन्य वस्तुओं से निर्मित एक ऊंचा चबूतरा 

थड़ा :- मृत पुरुष के दाह - स्थान पर बनाया हुआ स्मृति भवन जोधपुर में महाराणा जसवंत सिंह की यादगार में दुर्ग के पास एक संगमरमर का स्मृति भवन बनाया हुआ है जिसे जसवंत थड़ा कहा जाता है 
इसे राजस्थान का ताजमहल का आ जाता है 

हनुमानगढ़ का भटनेर दुर्ग भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग मिट्टी से बने हुए हैं 

जीव रखा :- मुख्य मार्ग से होने वाले आक्रमण को विफल  करने वाली रक्षा भित्ति थी | जीव रखा किले के ढलान वाले  मार्ग पर सैनिक रखने का स्थान था यह छोटा गढ़ वह किला की आत्मा  था 
किले के ऊपर 4 -5 घोड़ों के एक साथ चलने योग्य चौड़ी प्राचीर पर थोड़ी- थोड़ी दूरी पर घुमटिया बनाई जाती थी इसमें  सैनिक नियुक्त रहते थे, जो कवसीस कहलती

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