Wednesday, August 26, 2015

शायद ज़िन्दगी बदल रही है


जब मैं छोटा था**, **शायद दुनिया*
*बहुत बड़ी हुआ करती थी**..*
*
मुझे याद है मेरे घर से “स्कूल” **तक*
का वो रास्ता**, क्या क्या नहीं था वहां,
*चाट के ठेले**, जलेबी की दुकान, *
बर्फ के गोले**, सब कुछ,
*
अब वहां “मोबाइल शॉप**”, *
*”विडियो पार्लर” हैं, *
*फिर भी सब सूना है**..*
*
शायद अब दुनिया सिमट रही है…**
.
.
.*
*जब मैं छोटा था**, *
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती थीं…
*
मैं हाथ में पतंग की डोर पकड़े, *
*घंटों उड़ा करता था**, *
*वो लम्बी** “साइकिल रेस“,
वो बचपन के खेल, *
*वो हर शाम थक के चूर हो जाना**,*
*
अब शाम नहीं होती, **दिन ढलता है *
*और सीधे रात हो जाती है**.*
*
शायद वक्त सिमट रहा है..**
.*
.
.
*
जब मैं छोटा था, *
*शायद दोस्ती *
*बहुत गहरी हुआ करती थी**,*
*
दिन भर वो हुजूम बनाकर खेलना, *
*वो दोस्तों के घर का खाना**, *
*वो लड़कियों की बातें**, *
*वो साथ रोना**… *
*अब भी मेरे कई दोस्त हैं**,*
*पर दोस्ती जाने कहाँ है**, *
*जब भी** “traffic signal” **पे मिलते हैं *
*”Hi” हो जाती है, *
*और अपने अपने रास्ते चल देते हैं**,*
*
होली, दीवाली, जन्मदिन, *
*नए साल पर बस** SMS आ जाते हैं,
शायद अब रिश्ते बदल रहें हैं..**
.*
.
*जब मैं छोटा था**, **
तब खेल भी अजीब हुआ करते थे,*
*छुपन छुपाई**, लंगडी टांग, **
पोषम पा, कट केक,
टिप्पी टीपी टाप.*
*अब **internet, office, **
से फुर्सत ही नहीं मिलती..*
*शायद ज़िन्दगी बदल रही है**.*
.
.
.
*जिंदगी का सबसे बड़ा सच यही है**.. **
**जो अक्सर कबरिस्तान के बाहर **
बोर्ड पर लिखा होता है…*
*”मंजिल तो यही थी, **
**बस जिंदगी गुज़र गयी मेरी **
यहाँ आते आते“*
.
.
.
*ज़िंदगी का लम्हा बहुत छोटा सा है**.*..
कल की कोई बुनियाद नहीं है
*और आने वाला कल सिर्फ सपने में ही है.. *
*अब बच गए इस पल में**..*
*तमन्नाओं से भरी इस जिंदगी में **
हम सिर्फ भाग रहे हैं..
कुछ रफ़्तार धीमी करो,
मेरे दोस्त, *

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