Monday, August 3, 2015

वतन

सर पर तिरंगे का जूनून,
नयी क्रांति का अरमान है,
होंठों पे वन्दे मातरम,
और दिल में हिन्दुतान है,
न जाति है न धर्म है,
न वर्ग की पहचान है,
कुदरत की ही रचना है तू,
कुछ है तो बस इंसान है,
दोष किसको देंगे क्या,
हम खुद ही जिम्मेदार हैं,
चुपचाप देखे जुल्म जो,
वो देश के गद्दार हैं,
काम वतन के न आये,
वो खून नहीं है पानी है,
जो माँ की आन न रख पाए,
वो कैसा हिन्दुस्तानी है,
माटी है ये बलिदानों की,
इसका न अब अपमान हो,
जागो पुकारे अब वतन,
जागो.... जागो अगर इंसान हो.....

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