Monday, August 3, 2015

एक पगली न जाने क्यू

एक पगली न जाने क्यू
मुझको देखकर मुस्कुराती थी
जब मैं उसको बुलाता तो
वो जाने क्यू इतराती थी
जब जब मैं उसको देखता तो
मै सोचा करता था
लगता था जैसे उसकी याद मुझे सताती थी
उसको देखना मुझे अच्छा लगता था
और मुझको देखकर वो मुसकराती थी
मै जब उससे कहता
मै तुमसे प्यार करता हूँ
फिर वो मुझको पागल बताती थी
जब कभी मै उदास हो जाया करता था
आकर मेरे पास मुझे खूब हंसाती थी
जब मै उसकी चोटी खीचा करता था
कुछ देर के लिए वो रूठ जाती थी
प्यार की बाते समझी जब वो
मुझको अपना खुदा बताती थी
छोडकर ना जाना तुम मुझको
साथ जीने मरने की कसमे खाती थी
साथ जीने मरने की कसमे खाती थी …….

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