Tuesday, December 22, 2020
दुर्गो की प्रकार
Saturday, December 19, 2020
16 अगस्त 1946 : कोलकाता डाईरेक्ट एक्शन
16 अगस्त 1946 सीधी कार्यावाही का दिन
मुस्लिम लीग नें मुस्लमानों के लिये पृथक राष्ट्र की मांग के लिये मुस्लमानों से सीधी कार्यवाही का आह्वान किया। लीग के नेताओं नें अपने बयानों से एक बहुत बङे कत्ले आम की नींव तैयार कर दी थी लेकिन मोहनदास गांधी की जिद और ब्रिटिश सरकार की तट्स्थता नें लाखों हिंदुओं की बलि ले ली,लाखों हिंदुओं को जबरदस्ती मुस्लमान बना दिया गया लाखों हिंदु नारियों की अस्मत लूट ली गई, लाखों हिंदुओं की जमीन जायदाद हङप ली गई और उन्हें पलायन करने को मजबूर किया गया।
लीग के नेताओं के बयानों की एक बानगी :-
1. मोहम्मद अली जिन्ना :- डाईरेक्ट एक्शन – हिंदुओं पर 100 गुणा अधिक तीव्र हो।
2. सरदार अब्दुर रब निश्तार :- पाकिस्तान केवल खुद का खुन बहा कर हासील किया जा सकता है, और अगर जरुरत हुई और हालात बने तो दुसरों का खुन बहाने से भी परहेज नहीं करेंगे।
3. नवाब जादा लियाकत अली खान :-सीधी कार्यवाही का मतलब असंवैधानिक सहारे जैसे भी हालात इजाजत दें।
4. गुलाम मुस्तफा शाह गिलानी :- पाकिस्तान कि स्थापना को रोकने की कोशिश पर किसी भी रक्त-पात का नेतृत्व करुंगा।
5. सरदार शौकत हयात खान :- पंजाब का मुसलमान अहिंसा में विश्वास नहीं करता,हमें व्यथित मत करो, अगर एक बार यह मुस्लिम शेर भङक गया तो रोक पाना मुश्किल होगा।
6. सर फिरोज खां नून :- हमनें बेहतर तरीके से बता दिया है। हम ब्रिटेन के खिलाफ लङे हैं, अगर हमें किसी केंद्रिय हिंदु राज के अंतर्गत रखा गया तो यह मुसलमानों को लज्जित करनें जैसा होगा, लोग भुले नहीं होंगे, हलाकू और चंगेज खान ने क्या किया था।
7. सर गुलाम हुसैन हिदायतुल्ला जो तात्कालीन सिंध के प्रधानमंत्री थे :- कांग्रेस जब तक हमारी मांग नहीं मान लेती तब तक दोस्ती का कोई मतलब नहीं। इसके अलावा हिंदुस्तान में शांति स्थापित होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
16 अगस्त की सुबह कोलकाता के लिये मुसीबत ले कर आई। 10 बजे लाल बाजार पुलिस मुख्यालय को सुचना मिली शहर में कुछ जगह छुरे-बाजी, पथराव की घटनायें हुई हैं तथा जबरदस्ती दुकानें बंद करवाई गई हैं। ये घटनायें मुख्य रुप से राजा बाजार, केला बागान, काॅलेज स्ट्रीट, हैरिसन रोङ,कोलुटोला और बुर्रा बाजार इलाकों में हो रही थीं, जो शहर के उत्तर-मध्य भागों में केंद्रित थे। यह आर्थिक रुप से सम्पन्न हिंदु बाहुल्य क्षेत्र था।
घटना ने तब विकराल रुप धारण कर लिया जब ठीक 12 बजे मुस्लिम लीग ने आॅक्टरलोनी स्मारक में सभा शुरु की। उस समय यह बंगाल की सबसे बङी मुस्लिम विधान सभा थी। कोलकाता के विभिन्न भागों से दोपहर की नमाज के बाद मुसलमान इकट्ठा होना शुरु हो गये। सभा लगभग 2 बजे शुरु हई। इस भीङ को बङी संख्या में लोहे के सरियों व लाठियों से सुसज्जित किया गया था। उस वक्त के केंद्रिय अधिकारी के मुताबिक भीङ में 30,000 लोग शामिल थे लेकिन कोलकाता स्पेशल ब्रांच के अधिकारी जो कि मुस्लिम था के अनुसार 500,000 लोग थे। बाद के आंकङे ज्यादा प्रतीत होते हैं जो कि असम्भव सा है, स्टार आॅफ इंडिया के रिपोर्टर के अनुसार 100,000 लोग थे। पुलिस दखल ना दे यह सुनिश्चित कर लिया गया था, हलांकि पुलिस को वापिस नियंत्रण का भी कोई विशिष्ट आदेश नहीं था। तात्कालिन प्रधानमंत्री सुहारवर्दी की इस सभा की रेपोर्टींग के लिये कोलकाता पुलिस ने सिर्फ एक आशुलिपिक को भेजा था इस वजह से सुहारवर्दी के भाषण की कोई प्रतिलिपि मौजुद नहीं है। सुहारवर्दी ने सुबह के हमलों को हिंदुओं का मुसलिमों पर हमला बताया और कहा कि मुसलमानों ने सिर्फ अपनी हिफाजत की थी। सुहारवर्दी नें इस विशाल अशिक्षित भीङ को हिंदुओं पर हमला करनें तथा उनकी दुकानें लूटनें के लिये उकसाया। उत्तेजित भीङ शिघ्र ही वहाँ से निकल पङी। कुछ ही देर में सुचना मिली की हथियार बंद मुसलमान ट्रकों में भर कर हैरिसन रोङ पर पहुंच गये हैं। इस भीङ नें हिंदुओं और सिखों पर हमला कर दिया, दुकानें लूट ली गईं, कुछ लोग ईंट, शीशे की टुटी बोतलों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। भयभित हिंदुओं तथा सिखों को पकङ-पकङ कर काटना शुरु कर दिया। हिंदुओं तथा सिखों की लाशें बिछा दी गई। कोलकाता के सहायक प्रोवोस्ट मार्शल मेजर लिटिल बाॅय के नेतृत्व में सैन्य संस्थानों, गार्ड, व इस तरह के हालात से निपटनें में विशेष रुप से सक्षम बलों नें विस्थापित व जरुरतमंद लोगो के लिये बचाव अभियान में महत्वपुर्ण कार्य किया।
17 अगस्त को मेटियाब्रज स्थित केसोराम काॅट्न में नरसन्हार का नंगा खेल खेला गया। सैयद अब्दुल्ला फारुखी (जो कि गार्ड्न रीच टेक्स्टाइल युनियन का अध्यक्ष था ) नें इलियान मिस्त्री नामक मुसलमान गुंडे के साथ एक मुस्लिम भीङ का नेतृत्व करते हुये मील परिसर में बनें कर्मचारी आवास में रह रहे मजदुरों पर धावा बोल दिया। इस भीङ नें फारुखी की शह पर
थोक में कत्ले आम मचा दिया। इस नरसन्हार 1100 हिंदुओं को काट डाला गया जिसमें 300 उङिया मजदुर भी थे।
इस नरसन्हार में 4 जिवित बच गये लोगोंं नें 25 अगस्त को फारुखी के खिलाफ मेटियाब्रज पुलिस थानें शिकायत दर्ज करवाई। उङिसा सरकार के मंत्री बिश्वनाथ दास नें केसोराम काॅट्न मील में उङिया मजदुरों की हत्या की जांच के लिये दौरा किया। कुछ सुत्र मृतकों की संख्या 7,000 से 10,000 तक बताते हैं। सभी मृतक हिंदु थे।
साम्प्रदायिक दंगे एक सप्ताह तक चलते रहे। 21 अगस्त को बंगाल को वायसराय के अधीन कर दिया गया। 5 ब्रिटिश सैनिक बटालियन तैनात की गईं जिनकी सहायता के लिये 4 हिंदु,गोरखा बटालियन भी लगाई गईं। लार्ड वावेल नें और ब्रिटिश सैनिक बुलाने चाहे मगर ज्यादा ब्रिटिश सैनिक उपलब्ध नहीं थे। 22 अगस्त को दंगों का असर कम कर दिया गया।
नोआखली में जो दंगें हुये उन्हें नोआखली नरसन्हार के रुप में जाना जाता है। यह नरसन्हार, बलात्कार, अपहरण,लूट व जबरन धर्म परिवर्तन की एक श्रंखला थी। अंग्रेजों से आजादी के साल भर पहले अक्टुबर-नवम्बर 1946 में मुसलमानों द्वारा किया गया यह नरसन्हार 2,000 वर्ग मील के विस्तृत क्षेत्र में फैल गया था। नोखावली जिले के रामगंज, बेगमगंज, रायपुर, लक्ष्मीपुर,चोगलनैया व सेंड्विप पुलिस थानों के अंतरगत तथा टिपेराह जिले के हाजीगंज, फरीद्गंज, चांदपुर,लक्सम तथा चौद्दाग्राम के थानों के क्षेत्र प्रभावित हुये थे।
10 अक्टुबर 1946 को कोजागरी लक्ष्मी पुजा के दिन शुरु हुआ हिंदुओं का नरसन्हार एक सप्ताह तक बेरोकटोक चलता रहा। इसमें 5,000 (सुत्रों के अनुसार 10,000) हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया। दंगों में बचे50,000-75,000 नें कोमिला, चांदपुर, अगरतला के अस्थाई शिविरों में शरण ली। जिन्हें जबरन मुसलमान बना दिया गया था वो लोग मुस्लिम नेताओं की कङी निगरानी में जी रहे थे। उन्हें गाँवों से बाहर जानें के लिये मुस्लिम नेताओं से अनुमति लेनी पङती थी। जबरन मुसलमान बनाये लोगों को मजबुर किया गया कि वो लिख कर दें कि हमनें अपनी मर्जी से मुसलमान होना स्वीकार किया है। उन्हें मुस्लिम लीग की सदस्यता के लिये भुगतान करने को मजबुर किया गया। उन पर जिजिया लगाया गया तथा जिम्मी (एक इस्लामिक राज्य) के रुप में उन्हें संरक्षण कर देना पङा। नोआखली जिले से बंगाल विधान सभा में प्रतिनिधि हारान चौधरी घोष नें कहा था ये साधारण दंगे नही थे ये मुसलमानों द्वारा प्रायोजित हिंदुओं का नरसंहार था। डाॅ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी नें कहा के यह बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा अल्पसंख्यक हिंदुओं का योजनाबद्द नरसंहार था।
मोहनदास गांधी ने नोआखली में शांति व साम्प्रदायिक सदभाव करनें के लिये 4 महिनें तक शिविर लगाया मगर यह मिशन बचे खुचे हिंदुओं में स्थाई रुप से अपनें गाँवों में पुनर्वास का विश्वास जगानें में नाकाम रहा। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व नें विभाजन को स्वीकार कर लिया और शांति मिशन तथा राहत शिविरों को बीच में ही छोङ दिया गया। बचे हुये हिंदु आसाम,त्रिपुरा तथा बंगाल में पलायन कर गये जहाँ वो बहुसंख्यक बन सकें।
ref: https://enacademic.com/dic.nsf/enwiki/1148458
Saturday, December 12, 2020
रिश्तो_में_दरार
Thursday, December 3, 2020
शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी : सच्चाई
आगरा के ताजमहल को शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी का प्रतीक कहा जाता है.
लेकिन शाहजहाँ और मुमताज की प्रेम कहानी को इतिहासकार शुरू के नकारते आयें हैं. शाहजहाँ और मुमताज की कोई प्रेम कहानी नहीं थी, बल्कि इनके जीवन की सच्चाई प्रेम कहानी से बिलकुल अलग थी.
- मुमताज का असली नाम अर्जुमंद-बानो-बेगम” था, जो शाहजहाँ की पहली पत्नी नहीं थी.
- मुमताज के अलावा शाहजहाँ की 6 और पत्नियां भी थी और इसके साथ उसके हरम में 8000 रखैलें भी थी.
- मुमताज शाहजहाँ की चौथे नम्बर की पत्नी थी. मुमताज से पहले शाहजहाँ 3 शादियाँ कर चुका था. मुमताज से शादी करने के बाद 3 और लड़कियों से विवाह किया था.
- मुमताज का विवाह शाहजहाँ से होने से पहले मुमताज शाहजहाँ के सूबेदार शेर अफगान खान की पत्नी थी. शाहजहाँ ने मुमताज का हरम कर विवाह किया.
- मुमताज से विवाह करने के लिए शाहजहाँ ने मुमताज के पहले पति की हत्या करवा दी थी.
- शाहजहाँ से विवाह के पहले मुमताज का शेर अफगान खान से एक बेटा भी था.
- मुमताज शाहजहाँ के बीवियों में सबसे खुबसूरत नहीं थी. बल्कि उसकी पहली पत्नी इशरत बानो सबसे खुबसूरत थी.
- मुमताज की मौत उसके 14 वे बच्चे के जन्म के बाद हुई थी.
38-39 बरस की उम्र तक मुमताज तकरीबन हर साल गर्भवती रहीं. शाहजहांनामा में मुमताज के बच्चों का ज़िक्र है. इसके मुताबिक-
1. मार्च 1613: शहजादी हुरल-अ-निसा
2. अप्रैल 1614: शहजादी जहांआरा
3. मार्च 1615: दारा शिकोह
4. जुलाई 1616: शाह शूजा
5. सितंबर 1617: शहजादी रोशनआरा
6. नवंबर 1618: औरंगजेब
8. जून 1621: सुरैया बानो
9. 1622: शहजादा, जो शायद होते ही मर गया
10. सितंबर 1624: मुराद बख्श
11. नवंबर 1626: लुफ्त्ल्लाह
12. मई 1628: दौलत अफ्जा
13. अप्रैल 1630: हुसैनआरा
14. जून 1631: गौहरआरा
शाहजहां की बेगम मुमताज महल ने अपने 14वें बच्चे गौहर आरा के जन्म के दौरान 17 जून 1631 को दम तोड़ दिया था। मुमताज अपनी 19 साल के वैवाहिक जीवन में 10 साल से ज्यादा समय तक गर्भवती रहीं।
- 17 मई 1612 को मुमताज महल और शाहजहां की शादी हुई। उन्होंने 14 बच्चों को जन्म दिया। इनमें से आठ लड़के और छह लड़कियां थीं। इनमें सिर्फ सात ही जिंदा बचे।
- शादी के बाद मुमताज महल ने लगातार 10 बच्चों को जन्म दिया।
10वें और 11वें बच्चे के जन्म में पांच साल का अंतर था।
1627 में वो 12वीं बार गर्भवती हुईं।
दो साल बाद 1629 में 13वें बच्चे को जन्म दिया।
14वें बच्चे को 1631 में जन्म देने के दौरान 30 घंटे की प्रसव पीड़ा से जूझते हुए मुमताज ने दम तोड़ दिया था। 30 घंटे तक प्रसव पीड़ा में रहीं थीं मुमताज...
- मुमताज के मौत के तुरंत बाद शाहजहाँ ने मुमताज की बहन फरजाना से विवाह कर लिया था.
ये थी शाहजहाँ और मुमताज़ की प्रेमकहानी की सच्चाई.....
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