एक व्यापारी था जिसके
पास उसके अपने
पांच ऊँट थे
जिन पर सामान
लादकर वो शहर
शहर घूमता और
कारोबार करता था
और अपना व्यापार
किया करता था
| एक बार लौटते
हुए रात हो
गयी | तो वो
रात को आराम
करने के लिए
एक सराय में
रुका और और
पेड़ोसे ऊँट को
बाँधने की
तैयारी करने लगा
| चार ऊँट तो
बांध गये लेकिन
पांचवे के लिए
रस्सी कम पड़
गयी |
उसने जब कोई
उपाय और नहीं
सूझा तो सराय
में मालिक से
सहायता मांगने की सोची
वो सराय के
अंदर जा ही
रहा था कि
उसे गेट के
बाहर एक फ़कीर
मिला जिसने व्यापारी
से पुछा कि
‘तुम कुछ परेशान
लग रहे हो
बताओ क्या परेशानी
है हो सकता
है मैं तुम्हारी
कुछ मदद कर
पाऊं ‘ व्यापारी ने उसे
अपनी समस्या बतलाई
तो वो बड़े
जोर जोर से
हसा और फ़कीर
ने कहा कि
पांचवे ऊँट को
भी ठीक उसी
तरह बांध दो
जिस तरीके से
तुमने बाकि के
ऊँटो को बांधा
है | फकीर के
ये कहने पर
व्यापारी ने थोडा
खीजकर और हैरान
होकर कहा लेकिन
‘रस्सी है कन्हा
?” इस पर फ़कीर
ने कहा उसे
तुम कल्पना की
रस्सी से बांधो
| व्यापारी ने ऐसा
ही किया और
उसने ऊँट के
गले में अभिनय
करते हुए काल्पनिक
रस्सी का फंदा
डालने जैसा व्यवहार
किया और उसका
दूसरा सिरा पेड़
से बांध दिया
| ऐसा करते ही
ऊँट बड़े आराम
से बैठ गया|
व्यापारी चला गया
सराय के अंदर
और जाकर बड़े
आराम से बेफिक्री
की नींद सोया
सुबह उठा और
चलने की तयारी
करी तो उसने
बाकि के ऊँटो
को खोला तो
सारे ऊँट खड़े
हो गये और
चलने को तैयार
हो गया लेकिन
पांचवे ऊँट को
हांकने के बाद
भी वो खड़ा
नहीं हुआ इस
पर व्यापारी गुस्से में आकर
उसे मारने लगा
लेकिन फिर भी
ऊँट नहीं उठा
इतने में कल
वाला फ़कीर आया
तो उसने कहा
पागल इस बेजुबान
को क्यों मार
रहे हो अब
| कल तुम ये
बैठ नहीं रहा
था तो परेशान
थे और आज
जब ये आराम
से बैठा है
तो भी तुमको
परेशानी है इस
पर व्यापारी ने
कहा पर महाराज
मुझे जाना है
| फ़कीर ने कहा
इसे खोलोगे तभी
उठेगा न इस
पर व्यापारी ने
कहा मैंने कौनसा
इसे बाँधा था
मेने तो केवल
बंधने का नाटक
भर किया था
तो फ़कीर कहने
लगा जैसे कल
तुमने इसे बाँधने
का नाटक किया
था वैसे ही
अब खोलने केलिए
भी नाटक करो
| व्यापारी ने ऐसी
ही किया और
पलभर में ऊंट
खड़ा हो गया
| अब फ़कीर ने
पते की बात
बोली कि जिस
तरह ये ऊंट
अदृश्य रस्सियों से बंधा
है उसी तरह
लोग भी पुरानी
रुढियों से बंधे
है और आगे
बढ़ना नहीं चाहते
है जबकि परिवर्तन
प्रकृति का नियम
है और इसलिए
हमे रुढियों के
विषय में ना
सोचकर अपनी और
अपने अपनों की
खुशियों के बारे
में सोचकर कभी
कभी जिन्दगी के
कुछ ऐसे नियम
जो हमने नहीं
बनाये है और
उनके होने का
औचित्य नहीं है
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