दूर दराज इलाकों का दौरा करने के लिए गया।
जब वह अपने महल में वापस लौटा, उसे अपने पैरों में बहुत दर्द महसूस हुआ क्यों कि इतनी लम्बी यात्रा

सम्पूर्ण राज्य के सभी मार्गों को चमड़े से पाट दिया जाये जिससे कि यदि वह भविष्य में कभी कहीं जाये तो
उसके पैरों में कष्ट न हो।
किन्तु, उसके इस आदेश का पालन हो पाना इतना आसान न था। इसके लिए हजारों गायों/भैसों की खाल की
आवश्यकता थी, अतः यह काम बहुत खर्चे वाला था।
यह देखकर राजा के एक समझदार मंत्री ने बड़ी हिम्मत जुटा कर उसे सुझाव दिया, " महाराज ! आपको सारे
मार्गों पर चमड़ा बिछा कर इतना अधिक खर्चा करने की क्या आवश्यकता है ?
आप चमड़े का एक टुकड़ा काट कर केवल अपने पैरों पर क्यों नहीं पहन लेते ? "
पहले तो राजा को उसका सुझाव अजीब सा लगा किन्तु, बाद में राजा मान गया और उसने अपने पैरों के लिए
एक चमड़े का खोल या 'जूता' बनवा लिया और उस मंत्री को पुरस्कृत किया।
इस कहानी में एक महत्वपूर्ण सन्देश है और वह यह है कि इस संसार में सुख से रहने का मूलमंत्र है कि
संसार को बदलने का प्रयास न करो बल्कि स्वयं को बदल डालो।
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