- तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥
- साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥
- धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥
Monday, November 23, 2020
तेग बहादुर की शहीदी
Friday, November 13, 2020
अकबर की हकीकत
जोधाबाई और भारत के मुगल शासक अकबर की प्रेमकथा देश की सबसे बड़ी प्रेम कहानियों में गिनी जाती है लेकिन ये दोनों पति-पत्नी तो क्या प्रेमी तक नहीं थी। इतिहासकारों और कुछ गाइड्स की गलतफहमी की वजह से अकबर का नाम उन्हीं की बहु जोधाबाई के साथ जोड़ दिया गया। दरअसल जोधाबाई उनके बेटे सलीम उर्फ जहांगीर की पत्नी थी, लेकिन जोधा अकबर की प्रेम कहानी में कोई सच्चाई नहीं है।
जोधा अकबर की प्रेम कहानी अकबर को अच्छा दिखाने के लिए बनाई गई काल्पनिक कहानी ही है। अकबर पूरी दुनिया को अपना ग़ुलाम बनाना चाहता था और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। लेकिन उसके इस सपने में सबसे बड़ी बाधा थे राजपूत और उन सभी राजपूतों को हरा पाना अकबर के लिए कतई संभवनहीं था ।
Saturday, November 7, 2020
अद्भुत स्थापत्य कला
भारत के इतिहास के झूठ
इतिहास विषय में सबसे ज्यादा गलत तथ्यों या शख्सियतों का प्रचार प्रसार किया जाता है और इनमें सबसे ज्यादा मशहूर झूठ है :-
1.) अला उद दीन खिलजी ने हिंदुस्तान को खतरनाक मंगोलो से बचाया
अला उद दींन ने हिंदुस्तान नहीं बल्कि खुद को और अपने साम्राज्य को खुंखार मंगोलो से बचाया क्योंकि अगर मंगोल हिंदुस्तान पे कब्ज़ा कर लेते तो सबसे पहले तो खिलजी और उसके तुर्क अफ़ग़ान दरबारियो को ज़लालत और बर्बरता से बेइज़्ज़त करके मारते जिसके लिए वो कुख्यात थे , अफ़ग़ानिस्तान को तो यह लोग पहले ही मंगोलो के हाथो खो चुके थे इसलिए भाग के जाते भी कहा तो उनके लिए तो यह करो या मरो वाला सवाल था और तो और इन तुर्क अफ़ग़ानों ने कौनसा हिंदुस्तान को प्रताड़ित करने में कोई कसर छोड़ी।
2.) बाबर धर्मनिरपेक्ष शाशक था और हिंदुस्तान में आ के यहाँ का हो गया।
अगर बाबर इसे पढता तो हिन्दुस्तानियो की बेवकूफी पे ठहाका लगा के हस पड़ता। बाबर न कभी धर्मनिरपेक्ष था न उस कभी हिंदुस्तान पसंद था बल्कि उस की आत्मकथा बाबरनामा के माने तो वो भारत की सरज़मीन, नस्ल, मौसम, धर्म सबसे बेइंतहा नफरत करता था।
3.)अकबर महान था।
अकबर महान नहीं बस एक चतुर राजनेता था, एक बार अगर कोई विस्तार से अकबर के बारे में अध्ययन करे तो पायेगा की अकबर को कितना हद से ज़्यादा चढ़ाया गया है, उसकी धर्मनिरपेक्षता के उदहारण दिए जाते है, उसने भले ही जजिया और तीर्थ यात्रा जैसे कर हटाये लेकिन यह महान बादशाह अपनी सहूलियत के हिसाब से इन करो को दोबारा वसूलता था, इससे मालूम चलता है कि अकबर की धरनिर्पेक्षता इसकी आर्थिक हालात पर निर्भर करती थी।
साथ ही साथ अकबर की घिनोनी हरकते और काण्ड जैसे दारूबाजी, अफीमी, अत्यधिक कामुकता, मीना बाजार का काण्ड, अनेक नरसंघार, बच्चियो का यौन शोषण को कितनी चालाकी से छुपा दिया जाता है, ऐसा लंपट नशेड़ी कभी भी महान तो नहीं हो सकता।
4.) महाराणा प्रताप ने अकबर के हाथों अपना साम्राज्य खो दिया और भगोड़े के तरह जंगल में बाकि जीवन व्यतीत किया।
भारत के इतिहास में इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई होगा, हमे बताया जाता है कि महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद हार मान ली और बाकि ज़िन्दगी भगोड़ों की तरह जी जबकि असलियत यह है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद भी महाराणा प्रताप ने भी कभी हार नहीं मानी और अंतिम सांस तक मुघलो से लोहा लेते रहे और अपनी जीवन के अंत तक 90 प्रतिशत मेवाड़ को मुघलो की गिरफ्त से आज़ाद करवा लिया था।
5.) औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाया
औरंगज़ेब ने मुग़ल सल्तनत को दक्खन तक फैलाने की कोशिश ज़रूर की परंतु कामयाब नहीं हो सका, दक्खन हमेशा मुग़ल सरदारों के लिए क़ब्रगाह के नाम से मशहूर रहा क्योंकि कहा जाता है जो भी मुग़ल सरदार दक्खन में स्थान्तरित किया गया मुँह की खाके ही लौटा और कई तो अपनी जान से हाथ धो बैठे और दक्खन हमेशा मुघलो के गिरफ्त से बहार ही रहा।
कहा जाता है जब औरंगजेब अपनी मृत्युशय्या पे लेटा था और अपनी आखरी सांसे गिन रहा था तो उसने अपने दक्खन के मंसूबो को अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती माना था।
6.) मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग था।
बिलकुल गलत! मुग़ल काल भारत का स्वर्ण युग नहीं बल्कि आदिम युग था, हर विदेशी यात्री ने मुग़ल काल में भारत के आम जन में गरीबी और शासन वर्ग की अय्याशी और अत्याचार के बखान दिए है, देश का असली स्वर्ण युग गुप्त और मौर्य शासन था जब हर विदेशी यात्री ने देश की अमीरी और सम्पन्नता के बखान दिए थे।
और भी कई झूठ है जो हमे इतिहास में पढ़ाए जाते है, यह सबसे ज़्यादा प्रचलित है।
Tuesday, November 3, 2020
जनरल सगत सिंह राठौड़। PAK के करवाए 2 टुकड़े,
यह नाम है बहादुरी का। भारत के श्रेष्ठ फील्ड कमांडर और सबसे कामयाब सेनानायक का। जनरल सगत सिंह राजस्थान के वो बहादुर फौजी बेटे थे, जिनसे पूरी पाक और चीनी सेना खौफ खाती थी। पड़ोसी देशों की सेना के अलावा पुतगाली भी इनसे थरथर कांपते थे। वो बहादुर फौजी बेटा जिसने PAK के करवाए 2 टुकड़े, गोवा को 40 घंटे में कराया मुक्त
चूरू के कुसुमदेसर गांव में जन्मे जनरल सगत सिंह
राजस्थान के चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। उनके पिता ठाकुर बृजपाल सिंह ने बिकानेर की प्रसिद्ध कैमल कोर में अपनी सेवा दी थी और पहले विश्वयुद्ध में इराक में लड़े थे। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई वॉल्टर्स नोबल स्कूल, बिकानेर से की और बाद में डुंगर कॉलेज, बिकानेर में दाखिला लिया लेकिन अपनी ग्रेजुएशन कभी पूरी नहीं की। स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की।
दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई।
जब गोवा में किया पुर्तगाली शासन का अंत
आजादी के बाद सन 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय के अंतर्गत सैनिक कार्रवाई हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना। 1965 में ब्रिगेडियर सगत सिंह को मेजर जनरल के तौर पर नियुक्ति देकर जनरल आफिसर 17 माउंटेन डिवीजन की कमांड दे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया। वहां चीन की चेतावनी से अविचलित होकर सगत सिंह ने अपना काम जारी रखा और नाथू ला को खाली न करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है अन्यथा चीन इस पर कब्जा कर लेता।
पाक सेना के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर करवाया
वर्ष 1967 में मेजर जनरल सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशॉ ने मिजोरम में अलगाववादियों से लड़ने की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1970 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति देकर 4 कोर्प्स के जनरल आफिसर कमांडिंग के तौर पर तेजपुर में नियुक्ति दी गई। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह ने बेहतरीन युद्ध कौशल और रणनीति का परिचय दिया तथा युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने छाताधारी ब्रिगेड की मदद से विशाल नदी पार करने का कारनामा कर दिखाया। यह जनरल सगत सिंह के अति साहसी निर्णयों से ही संभव हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश आजाद हुआ। इस युदध के बाद पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और बांगलादेश अस्तित्व में आया। सैन्य इतिहासकार मेजर चंद्रकांत सिंह बांग्लादेश की आजादी का पूरा श्रेय सगत सिंह को देते हैं।
सेना का वह अफसर जिसने बिना प्रधानमंत्री की परमिशन के 1967 में चीनी सैनिकों पर बरसा दिए थे तोप के गोले
अचानक एक सीटी बजी और चीनियों ने भारतीय सैनिकों पर ऑटोमेटिक फायर शुरू कर दिया। राय सिंह को तीन गोलियां लगीं। मिनटों में ही जितने भी भारतीय सैनिक खुले में खड़े थे या काम कर रहे थे, शहीद हो गए। फायरिंग इतनी जबर्दस्त थी कि भारतीयों को अपने घायलों तक को उठाने का मौका नहीं मिला। हताहतों की संख्या इसलिए भी अधिक थी क्योंकि भारत के सभी सैनिक बाहर थे और वहां आड़ लेने के लिए कोई जगह नहीं थी।
जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी फायरिंग कर रहे हैं। उस समय तोप की फायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास था। यहां तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फैसला लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फायर खुलवा दिया। इसके बाद लड़ाई शुरू हो गई जो तीन दिन तक चली।
जनरल सगत सिंह ने नीचे से मध्यम दूरी की तोपें मंगवाईं और चीनी ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिक ऊंचाई पर थे और उन्हें चीनी ठिकाने साफ नजर आ रहे थे, इसलिए उनके गोले निशाने पर गिर रहे थे। जवाब में चीनी भी फायर कर रहे थे। उनकी फायरिंग अंधाधुंध थी, क्योंकि वे नीचे से भारतीय सैनिकों को नहीं देख पा रहे थे। इससे चीन को बहुत नुकसान हुआ और उनके 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए।
चार दिन बाद यह लड़ाई खत्म हुई। जनरल वीके सिंह ने भी इस बारे में अपनी किताब में लिखा है कि 1962 की लड़ाई के बाद भारतीय सेना के जवानों में चीन की जो दहशत हो गई थी वो हमेशा के लिए जाती रही। भारत के जवानों को पता लग गया कि वो भी चीनियों को मार सकता है।
जनरल सगत सिंह ने 26 सितंबर 2001 को ली अंतिम सांस
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पीवीएसएम) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ।
बरसती गोलियों के बीच हेलीकॉप्टर लेकर उतरे
बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान वे हेलीकॉप्टर से लड़ाई का जायजा लेने जाते थे और युद्ध स्थल पर ही लैंड कर जाते थे। इस तरह के मुआयने के दौरान ही एक बार उनके हेलीकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियां चलाई जिसमें पायलट भी बुरी तरह जख्मी हो गया। ऎसी स्थिति में सह पायलट ने नियंत्रण संभाला और हेलीकॉप्टर वापस अगरतला आया। बाद में जांच में पता चला कि हेलीकॉप्टर में गोलियों से 64 सुराख हो गए लेकिन फिर भी जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर न हुआ और वे एक दूसरा हेलीकॉप्टर लेकर निरीक्षण पर निकल पड़े। उनकी बहादुरी के अनेक किस्से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं और युद्ध की चर्चाओं में गर्व के साथ सुनाए जाते हैं।
Sunday, November 1, 2020
प्रतिहार , गौङ ,बल्ला ,दहिया वंश के गोत्र-प्रवरादि
गौङ वंश के गोत्र-प्रवरादि
झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि
सोलंकी वंश का गोत्र-प्रवरादि
भाटी वंश के गोत्र-प्रवरादि
कछवाह वंश के गोत्र-प्रवरादि
चौहान वंश के गोत्र-प्रवरादि
गुहिलोत(सिसोदिया) वंश के गोत्र प्रवरादि
परमार वंश के गोत्र-प्रवरादि
परमार वंश के गोत्र-प्रवरादि
तंवर (तोमर) वंश के गोत्र-प्रवरादि
तंवर (तोमर) वंश के गोत्र-प्रवरादि
राजपूतों की वंशावली /Rajput Vanshavali
"दस रवि से दस चन्द्र से बारह ऋषिज प्रमाण,
चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण
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लघु-कथा, 'गागर में सागर' भर देने वाली विधा है। लघुकथा एक साथ लघु भी है, और कथा भी। यह न लघुता को छोड़ सकती है, न कथा को ही। एक ग...